गुरुवार, 9 जनवरी 2014

ख़यालों की उलझन .......


ये मौसम ,
बड़े ही अजीब होते 
उन कदमों से 
इन आँखों तक 
रोज ही 
अपनी राह बदलते हैं 
कभी नम
कभी खुश्क साँसें भर 
बसंत को पतझर 
बना निर्जीव कर जाते हैं 

सफर 
फूलों का 
बस इतना सा ही है 
उस शाख से 
पूजा की डोली तक 
और कभी 
दुल्हन की डोली से 
कदम बढ़ा 
उस की अंतिम शय्या तक 


निष्कंटक 
बनी शाख की 
अनछुई छुवन 
अधखिले फूलों सी 
तीली के लब पर 
कंपकंपाती थिरकन 
ख़यालों के 
हर निशान समेटती 
वो तपन 
मासूम से शोलों की  ....... निवेदिता 


22 टिप्‍पणियां:

  1. माना की कम है फूलों का सफर ... पर है तो खूबसूरत ... जिसकी तलाश है सबको ...

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  2. निष्कंटक
    बनी शाख की
    अनछुई छुवन
    अधखिले फूलों सी
    तीली के लब पर
    कंपकंपाती थिरकन
    ख़यालों के
    हर निशां समेटती
    वो तपन
    मासूम से शोलों की ...वाह दी!!! बेहद सुंदर पंक्तियाँ अनुपम भाव संयोजन...:))

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  3. अभी तो ठंडक ने अंदर तक जमा कर रखा हुआ है :)
    .
    ख्याल भी जम से गए दी :)

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  4. बचपन में पुष्प की अभिलाषा पढ़ी थी और आज पुष्प की यात्रा देखी.. एक शब्द में कहूँ तो 'सम्पूर्ण'!!

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    1. भैया आज तो आपने एकदम से सातवें आसमान पर पहुंचा दिया ... सादर !!!

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  5. सलिल दादा ने मेरे मन की बात लिख दी ... :)
    प्रणाम भाभी |

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    उत्तर
    1. भईया ,शब्दों की ऐसी कंजूसी कि भैया के शब्दों से ही काम चला लिया ..... सस्नेह :)

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  6. चर्चा - मंच में सम्मिलित करने के लिये आभार आपका :)

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  7. शुक्रिया यशवंत ..... शुभकामनाएं तुमको :)

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  8. ब्लाग बुलेटिन में सम्मिलित करने के लिये आभार :)

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  9. बहुत सुन्दर......
    निष्कंटक
    बनी शाख की
    अनछुई छुवन
    अधखिले फूलों सी
    तीली के लब पर
    कंपकंपाती थिरकन..................वाह!!!

    सस्नेह
    अनु

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  10. बहुत सुन्दर... उत्कृष्ट रचना,,,,

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  11. अनुपम अभिव्यक्ति ! बहुत ही सुंदर रचना ! वाह !

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  12. सफर
    फूलों का
    बस इतना सा ही है
    उस शाख से
    पूजा की डोली तक
    और कभी
    दुल्हन की डोली से
    कदम बढ़ा
    उस की अंतिम शय्या तक


    दिल को छूती सुन्दर भावाभिव्यक्ति

    आभार.

    नववर्ष की शुभकामनाएँ.

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  13. कंपकंपाती थिरकन
    ख़यालों के
    हर निशां समेटती
    वो तपन
    मासूम से शोलों की ..
    ....... सुंदर पंक्तियाँ

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  14. नई पोस्ट पर आपका सवगत है निवेदिता जी
    .... खामोश रही तू :))
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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  15. निष्कंटक
    बनी शाख की
    अनछुई छुवन
    अधखिले फूलों सी
    तीली के लब पर
    कंपकंपाती थिरकन
    ख़यालों के
    हर निशान समेटती
    वो तपन
    मासूम से शोलों की ......
    वाह .... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने

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  16. ख़्यालों को अन्दर तक भेदते मौसमों के कंटक।

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