सोमवार, 31 जनवरी 2011

" भाव तुम्हारे.........."

मन की छुअन को छूते
दुलराते सहज स्नेहिल
भाव तुम्हारे ...........
जीवन की ढलती दोपहरी में
छाया बन सहेजते
हर चुभन ................
कभी चांदनी कभी फुहार बन
लहराती  फगुनहट सी
इन्द्रधनुषी चमक ..........
पल-पल बहती जीवन नदिया
भंवर -किनारों से बचते -बचाते
आ पहुंची मंजिल तक ......
लो फिर याद आते
भाव तुम्हारे ................

10 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है निवेदीता जी........बहुत ही साहित्यीक और उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई...........शुभकामनाएँ.....

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  2. अरे....फागुन आ गया क्या....
    क्या बात है.....
    अच्छा सन्देश था....ये काम है कवियों का....

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  3. सच है, कितने प्यारे, भाव तुम्हारे।

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  4. वाकई ...इतनी अच्छी कविता बहुत दिनों बाद पढने को मिली.

    सादर

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  5. बहुत ही साहित्यीक और उत्कृष्ट रचना| धन्यवाद|

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  6. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. उत्साह्वर्धन के लिये आप सब विद्वजन का आभार .....

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  9. सुन्दर है भाव भरे शब्द तुम्हारे !

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