एक प्रश्न अकसर चेतना को मथता है ,कि यह गणतंत्र या इसकी उपयोगिता है क्या | सच्चा गणतंत्र तो तभी संभव है जब बनाए गए संविधान को उसके सही अर्थों में प्रभावी भी करा सकें | अर्थात संविधान के अनुसार सब को एक समान अधिकार मिले और सम्मानपूर्ण रूप उसकी पहचान को भी मिले |
एक स्त्री ,आज भी इस तथाकथित आधुनिक होते जाते समाज में , अपनी सहजता ,निजता या कहना चाहिए अपनी समग्रता के प्रति निश्चिंत नहीं हो पाती | चाहे कुछ वर्षों पहले की बात करें अथवा अभी की ,वो खुद को अपनी ही निगाह में कभी भी सुरक्षित नहीं पाती | उसका नाम कुछ भी रख लें --जेस्सिका कहें या दिव्या ,आरुषी कहें या मधुमिता | इस श्रृंखला में कई चेहरे बस पलक झपकते ही जुड़ते जायेंगे और शायद पूरा ब्रह्माण्ड इस में बंध जाएगा और अपनी जवाबदेही से बचने का कोई भी रास्ता खोज ना पाए |
अगर वास्तव में हम एक सभ्य समाज की कल्पना करें तो सबसे पहले अपने बेटों को इतना जागरुक बनाएं की स्त्री को एक इंसान समझें और उन्हें एक अभिशाप बनने से बचाएं | शायद यह एक हमेशा कही जाने वाली बात लग रही हो ,परन्तु ऐसा है नहीं | आज जब बेटे कुछ भी करने को स्वतन्त्र हैं तो बेटियों को भी अस्वीकार करने की स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए ,शायद तब शराब देने से मना करने पर कोई जेस्सिका नहीं मारी जायेगी और सुकून से साँसे ले पाएगी | शायद तब ही शेष बची स्त्रियां अपना जीवन सहजता से सही अर्थों में जी पाएगी और नि:शब्दता से एक सार्थक संवाद की तरफ बढ़ पाएगी |
एक स्त्री ,आज भी इस तथाकथित आधुनिक होते जाते समाज में , अपनी सहजता ,निजता या कहना चाहिए अपनी समग्रता के प्रति निश्चिंत नहीं हो पाती | चाहे कुछ वर्षों पहले की बात करें अथवा अभी की ,वो खुद को अपनी ही निगाह में कभी भी सुरक्षित नहीं पाती | उसका नाम कुछ भी रख लें --जेस्सिका कहें या दिव्या ,आरुषी कहें या मधुमिता | इस श्रृंखला में कई चेहरे बस पलक झपकते ही जुड़ते जायेंगे और शायद पूरा ब्रह्माण्ड इस में बंध जाएगा और अपनी जवाबदेही से बचने का कोई भी रास्ता खोज ना पाए |
अगर वास्तव में हम एक सभ्य समाज की कल्पना करें तो सबसे पहले अपने बेटों को इतना जागरुक बनाएं की स्त्री को एक इंसान समझें और उन्हें एक अभिशाप बनने से बचाएं | शायद यह एक हमेशा कही जाने वाली बात लग रही हो ,परन्तु ऐसा है नहीं | आज जब बेटे कुछ भी करने को स्वतन्त्र हैं तो बेटियों को भी अस्वीकार करने की स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए ,शायद तब शराब देने से मना करने पर कोई जेस्सिका नहीं मारी जायेगी और सुकून से साँसे ले पाएगी | शायद तब ही शेष बची स्त्रियां अपना जीवन सहजता से सही अर्थों में जी पाएगी और नि:शब्दता से एक सार्थक संवाद की तरफ बढ़ पाएगी |
आप से शत प्रतिशत सहमत.इतने सब विकास के बावजूद हमारे समाज में स्त्री के प्रति धारणा नहीं बदली है.आज ज़रुरत बस सिर्फ इतनी सी बात समझने की है कि मानव जाति का आस्तित्व स्त्री पर ही टिका हुआ है.इस दुनिया से सभी पुरुषों को यदि समाप्त कर दिया जाये मानव जाति का आस्तित्व तब भी बना रहेगा.किन्तु जैसा कि चलन में है और यदि एक दिन सम्पूर्ण स्त्रियाँ समाप्त हो गयीं वही दिन शायद मानव का आखिरी दिन होगा.
जवाब देंहटाएंलिहाज़ा स्त्री जाति की महत्ता सिर्फ लिखने पढने में ही नहीं व्यवहार में प्रत्येक को समझने की महती आवश्यकता है.
विचारणीय आलेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
सादर
सब निशब्द।
जवाब देंहटाएंअब आगे क्या कहूँ ...आपने सब कह दिया ..बस मन करना है ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबिलकुल, सबसे पहली पाठशाला (घर परिवार) ही सब सही सिखा सकती है....
जवाब देंहटाएंशुरुआत अपने परिवार से सब लोग करें....
....आपने सब कह दिया
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
आप सब का आभार ..
जवाब देंहटाएं"Charity begins from home ".....A very beautiful and inspiring post .
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