शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

तुम.......मैं...........

तुम मेरा दक्षिण पथ बनो

मैं बनूँ पूर्व दिशा तुम्हारी
तुम पर हो अवसान मेरा
मै बनूँ सूर्य किरण तुम्हारी
तुम तक जा कर श्वास थमे मेरी
इससे बडी अभिलाषा क्या मेरी
अगर अन्तिम श्वास  पर मिलो तुम
इससे परे शगुन क्या विचारूं
हर पल अब तो बस पन्थ निहारूं
जीवन यात्रा का हो अवसान
बन प्रतिनिधि  तुम काल के
आ विचरो मेरे श्वास पथ पर
तुम मेरा दक्षिण पथ बनो
मै बनूँ ......   निवेदिता