गुरुवार, 18 सितंबर 2014

वंचित या वंचना


जानती हूँ  .... आज भी  .... 
तुम खुद को ,अपनी ही नज़रों में 
बहुत बड़ा मान रहे होगे  … 
सोचा होगा  .... तुमने कहा था 
किसी पल  … अपनी जीने के कारण को 
कहा था " ना " .... 
शायद "ना" कहना आसान होता है 
"हाँ" कहने के बाद 
उस "हाँ" को बनाये रखने के लिए 
बनाये रखना पड़ता है 
अपने समस्त आत्मबल को 
और जानते हो न 
आत्मबल होता ही उनके पास है 
जिनके पास आत्मा होती भी है 

अच्छा ये तुम खुद को ही बता लेना 
तुम्हारी इस "ना" ने 
किससे क्या है छीना 
लता को आसमान छूने के लिए 
तने का सहारा चाहिए 
पर ज़रा सोचो तो 
लता भले ही आसमान न छू सके 
अकेले अपने ही कदमों पर न खड़ी हो सके 
पर लता के फूल तो ज़मीन पर भी 
खुल कर खिल जाएंगे 
पर सोचो तो  .... 
वो पेड़ जरूर आसमान को देख रहा होगा 
पर उस लता के फूलों से तो वंचित ही रहेगा

जब भी सपनों के तराजू पर तौल कर देखोगे 
अपना पलड़ा  भारी ही समझोगे 
पर ऐसा है क्या  …. 
तुम्हारे एक बार "नहीं" कहने की 
सज़ा भी तुम्हारे स्वर को ही मिली 
अभिशप्त है वो मेरा नाम न ले सकने को 
तुम्हारी आँखों की तलाश 
दिल का भारीपन 
समय की तराज़ू पर तौल कर देखो 
किसने क्या खोया किससे क्या छूटा  …… निवेदिता !
                                                    

शनिवार, 13 सितंबर 2014

सिरहाना मिल जाये .....



ये मन को भिगोती 
यादों की रिमझिम फुहारे 
इनके धुंधलके से झाँकती 
तुम्हारी यादों की किरण 
अलकों का हिण्डोला सजा 
सुरीले से लम्हों की पींगे 
उनींदी सी पलकों तले 
इन्द्रधनुषी नींद की ओस में 
सो जाना चाहे ....
ब़स सिरहाना मिल जाये 
तुम्हारे हाथों की लकीरों का ..... निवेदिता 

सोमवार, 8 सितंबर 2014

एक अकेला दिल




                                                   भूले से भी कोई जान जाये
                                              दिल में किसी के क्या - क्या छुपा है
                                                     इसके बेनकाब होते ही
                                              न जाने कितने गुमनाम फसाद हो जाते
                                                     शायद इसीलिये खुदा ने
                                              दिल तो बस एक अकेला ही बनाया
                                                     राज़ खुलने से पहले ही
                                              बस उसकी धड़कने रोक देता है ....... निवेदिता !