"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
behtareen panktiyaan
अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको या फिर सिरहाना हो जो तेरी बाहों का अंगारों पे सो जाऊँ मैं... अच्छी रचना!
मर्मस्पर्शी अभिलाषा .... सुन्दर रचना
भावनाओं का सुन्दर संगम ....
बस सिरहाना मिल जाये ...तुम्हारी हाथों की लकीरों का .... बहुत सुन्दर लिखा , वाह !
behtareen panktiyaan
जवाब देंहटाएंअपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको या फिर सिरहाना हो जो तेरी बाहों का अंगारों पे सो जाऊँ मैं...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना!
मर्मस्पर्शी अभिलाषा .... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंभावनाओं का सुन्दर संगम ....
जवाब देंहटाएंबस सिरहाना मिल जाये ...तुम्हारी हाथों की लकीरों का .... बहुत सुन्दर लिखा , वाह !
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