मंगलवार, 22 मई 2012

मेरी चाहत !!!



तोहफ़ा
देना चाहते हो 
और मेरी चाहत 
पूछते हो 
तो सुनो 
छोटी सी 
चाहत है .......

नजरें तुम्हारी 
अपने चेहरे पर 
अरे नहीं ..
वो तो बसी रहे 
बस ,मेरे मन में !

खुशबू ..
तुम्हारी श्वांसों की 
मेरी जीवन में 
अरे नहीं .....
मेरी श्वांसों के हर पल में !

एह्सास ...
तुम्हारे होने का 
अपने साथ में 
अरे नहीं ....
परिपूरित करते  
मेरे अपने अंतर्मन को !

स्थान ...
तुम्हारे वामांग में 
अरे नहीं .....
तुम्हारी चाहत के 
हर इक मीठे-खारे लम्हे में !

बोलो दे पाओगे
मुझको बस इतना
छोटे-छोटे लम्हे
जो ला सकें
मेरे ही नहीं
तुम्हारे भी अधरों पर
खिलखिलाती मुस्कान ......
                              -निवेदिता 


रविवार, 20 मई 2012

गृहणी .....


गृहणियों के बारे में जब भी सोचा है वो एक लता सरीखी ही लगीं हैं ! आर्थिक और सामाजिक आधार के लिए साथी पर आश्रित सी होती हैं | परन्तु जैसे ही अनुकूल साथ मिल जाता है वो सशक्त रूप में निखर अपने परिवार पर छा सी जाती हैं | बेशक वो अर्थ संचय के लिए कहीं बाहर नहीं जाती हैं ,पर जो भी उनकी आमदनी होती है उसमें पल्लवित होना उनके लिए बहुत सहज रहता है | बेशक कभी उनको घर की नाम-पट्टिका का एक नाम ही माना जाता है ,एक रिक्त स्थान की पूर्ति जैसा ,पर जब वही स्थान कभी शून्य बन जाए तब लगता है कि उस शून्य के रहने से ही शायद घर का प्रारूप कई गुना बढ़ जाता है | बिना किसी बड़े संस्थान में गये ही शायद उनको मैनेजमेंट का गुण विरासत में ही मिल जाता है | इस बात का पता तब चलता है ,जब आप किसी आर्थिक रूप से किसी कमजोर के घर को देखिये वो भी व्यवस्थित ही मिलता है | आर्थिक संकट आने पर वो उसका पता नहीं चलने देतीं ,अपितु उसका सामना करने को तत्पर हो जातीं हैं |

गृहणियों के सामने थोड़ी दिक्कत तभी आती है जब उनके बच्चे बड़े हो कर अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं और उनके पास करने को कुछ ख़ास नहीं बचता है | इस खालीपन का कारण सिर्फ यही रहता है कि सब का ध्यान रखते-रखते वो अपना ध्यान रखना भूल जाती हैं | बच्चों को सुलाने में अपनी नींद भूल जातीं हैं | उनको अक्षरज्ञान कराते-कराते अपने शौक को किनारे कर देती हैं | ऐसा कर के वो कभी कुछ कमी नहीं अनुभव करतीं | बच्चे जब एक-एक कदम बढाते हुए जीवन में व्यवस्थित और प्रतिष्ठित होते हैं वो पल इतने खूबसूरत होते हैं कि उनके आगे बाकी कुछ भी फीका सा लगता है | 

जीवनसाथी का साथ इस समय उनको एक नई दिशा देता है | वो ही उनकी भूली-बिसरी अभिरुचियों की याद दिला ,फिर से जीने की एक नई राह दिखाता है और खालीपन को भरने में सहायक होता है | कभी बागबानी , तो कभी लेखन और पठन के नये आयाम मिल जाने से जीवन सहज और परिपूर्ण लगने लगता है और एक संतुष्टि का एहसास मिलता है |
                                      -निवेदिता 

शनिवार, 19 मई 2012

हत्या :एक दृष्टिकोण ये भी



समाचार-पत्र हो अथवा समाचार , हत्या का विवरण प्रमुखता से पर्याप्त स्थान घेरे रहता है | हमेशा तो नहीं पर कई बार सोचा इस कृत्य का मूल कारण क्या रहा होगा ! हर बार विभिन्न मन;स्थति ने भिन्न-भिन्न कारण बताये | कभी लगता है कि उस शख्स से कोई ऐसा जघन्य कृत्य हुआ होगा जिसने और कोई रास्ता न छोड़ा होगा ,तो कभी लगता कि नहीं शायद उस का गुनाह कम था पर अहं को ठेस अधिक लगी रही होगी | ये अहं ऐसा कोमल और नाज़ुकमना होता है कि एक नामालूम सा तिनका भी चोट पहुंचा जाता है | इस अपराध के मूल में कभी-कभी सामाजिक दबाव भी प्रभावी हो जाता है | लोगों के बोल ,ताने सांस लेना भी दूभर कर देते हैं |

जब संतुलित हो कर सभी परिस्थितियों का आकलन करती हूँ तो मुझे किसी भी हत्या का इकलौता कारण खुद अपना सामना न कर पाना ही लगता है | सामाजिक दबाव अथवा तनाव तो क्षणभंगुर ही होता है | कितनी भी और कैसी भी विषम चुनौतियाँ रास्ता रोक बढने की गति धीमी तो कर सकती हैं ,परन्तु जैसे ही उनसे निगाहें मिलाने को एक पल को ठिठक जाइए , उन्हें अपना रास्ता बदलने में समय नहीं लगता | कोई भी हत्या जैसी बड़ी घटना को सिर्फ अंजाम तभी दे सकता है ,जब कि वो खुद अपना ही सामना नहीं कर पाता हो | कोई भी घटना घटित तो एक छोटे से लम्हे में ही होती है ,ये तो हमारा कमजोर मन उसको बार-बार सोच-सोच  कर पुनर्जीवित किये रहता है | इन्हीं किसी कमजोर लम्हे में व्यक्ति असंतुलित होकर उस घटना के कारण ,अथवा ये कहना चाहिए कि जिसको हम कारण मानते हैं को ही नेस्तनाबूद करना चाहता है |

दुनिया की हर चीज़ ,रिश्ते-नाते छूट जाने के बाद भी ज़िन्दगी ज़िंदा रहती है ,पर खुद अपने को तो हम अपनी आख़री सांस तक नहीं छोड़ सकते | सम्भवत: इसीलिये हत्या जैसे कृत्य करने वाले व्यक्ति को सजा देते समय क़ानून में कुछ ऐसा प्रावधान भी करने का प्रयास करना चाहिए कि व्यक्ति खुद अपना सामना करने का साहस कर सके |  
          -निवेदिता 

सोमवार, 14 मई 2012

लड़की लग रही हो ....


किसी भी महिला से कह भर दीजिये "लड़की लग रही हो " बस फिर तो उसके हाव-भाव ही बदल जाते हैं | इस कथन में पूर्णतया झूठ हो तब भी प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी जैसे कि 'मिस वर्ल्ड' का तमगा मिल गया हो | अपनी उम्र से कम दिखने में कैसा सुकून वो भी तब जब आप स्वयं को अस्वस्थ बता कर सहानुभूति भी पाना चाहें ! परन्तु अगर किसी युवा कन्या से कह दीजिये कि "बच्ची लग रही हो" ,तब वो कतई खुश नहीं होगी | कभी सोचा भी है कि ऐसा क्यों होता है ! इसके मूल में सम्भवत: यही सोच है कि युवावस्था मतलब विचारों से ,स्वास्थ्य से ,सामाजिकता में ...हर तरह से जीवन में संतुलन आ जाना है | अपनी एक पहचान बना चुका युवा एक स्वस्थ वृक्ष की ऊर्जा सा आप्लावित लगता है | उसकी संघर्ष करने की सामर्थ्य हर चुनौती देते चेहरे को विजित करती जाती है |

परिपक्व होने के बाद भी युवा कहलाये जाने की लालसा असंतुष्ट मन का द्योतक लगती है | अपने युवा पुत्र अथवा पुत्री के साथ उनकी बहन जैसा दिखने की चाहत सहजता चुरा लेती है | कभी सोच कर देखें कि आप तो खुद को युवा दिखा रही हैं पर आपके बच्चे आपकी इस मनोवृत्ति को कैसे ले पा रहे हैं | अगर उनके दिल-दिमाग में झाँक कर देखे तो आप यही पाएंगी कि वो एक स्वस्थ माँ की कामना अवश्य करते हैं ,परन्तु माँ के रूप में एक माँ को ही देखना चाहते हैं | एक ऐसी माँ जो उनको समझ सके बिना उनके कुछ भी कहे | वो भी माँ में एक माँ की गरिमा चाहते हैं उश्रन्ख्लता नहीं | 

हम उस स्थिति से क्यों भागना चाहते हैं जो हमारा सच है ! खुद के प्रति ईमानदार हैं तो कभी भी वास्तविकता से नहीं भागेंगे | हर उम्र के अपने फायदे और नुकसान दोनों ही होते हैं , तब हर उम्र की फायदे की चाहत रखना तो गलत ही होगा | जब हम माँ बनना चाहते हैं तो मातृत्व को स्वीकार करते हैं ,उसी प्रकार जब बच्चों को बढ़ते देखना चाहते हैं तो अपनी परिपक्वता को भी स्वीकार करना चाहिए | इसलिए जब कोई कहे "लड़की लग रही हो" तो खुश न हों क्योंकि निश्चित रूप से मन में तो वो आपका उपहास ही कर रहा होता है | पर हाँ जब कोई कहे " आप स्वस्थ लग रही हैं " तब खुश जरूर हो जाइए .....:)
                                                                                                                                        -निवेदिता 

रविवार, 13 मई 2012

"मदर्स डे"




आज फेसबुक से लेकर ब्लॉग जगत तक हर जगह "मदर्स डे" की ही बात हो रही है | सब अपनी-अपनी माँ को याद कर रहे हैं ,उनके लाड़-दुलार और हाँ हँसती हुई फटकार को भी यादों की वीथियों से सम्हाल कर पुनर्जीवित कर रहे हैं | सच कहूँ तो कहीं अच्छा भी लग रहा है कि कम से कम इस दिन के बहाने ही सही इस रिश्ते पर सबका ध्यान जाता है ! मुझे लगता है कि सम्भवत: यही इकलौता रिश्ता है जो न रहने पर ही सबसे अधिक याद आता है | 

आज चाहती तो मैं भी थी अपनी माँ को ही याद करना ,परन्तु बीच रास्ते में ही मेरे विचारों की उंगलियाँ कुछ नन्हीं मासूम कलियों सी उँगलियों ने थाम लिया और अपने प्रश्नों के घेरे में हम सबको गुनाहगार सा महसूस करा गयीं | हम इन कोमल कलिकाओं की पुकार को अनसुना ही कर इनको जन्म ले पाने के पहले ही मौत के आगोश में सुला देते हैं ,माँ का आंचल तो इन मासूमों को मिल ही नहीं पाता | 
  
आज के इस शिक्षित युग में भी कन्या भ्रूण हत्या की सिर्फ बातें ही हो रही हैं | इनको बचाने का कोई भी प्रयास सिर्फ दिखावटी कागजी फ़ूल ही साबित हो रहा है | अपने वास्तविक जीवन में आज भी बेटी के माता-पिता होना एक बेचारगी का भाव ही ला देता है | इस पूरे परिप्रेक्ष्य में आज के सामाजिक हालात भी बहुत बड़े कारक का काम करते हैं | आज भी बेटियाँ सडक , पार्क , विद्यालय यहाँ तक कि घरों में निर्द्वन्द रूप से नहीं रह पाती हैं | हर समय एक अनसुनी आवाज़ को सुनने का प्रयास करती हुई हर पल एक अनदेखे खतरे का सामना करने को सजग रहने को विवश रहती हैं | शायद इसके मूल में उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित हम जैसे अभिभावकों के दिए हुए दिशा-निर्देश ही हैं | हमारी मजबूरी ये है कि हम खतरों से बचाने के प्रयास में अपनी बच्चियों को कुछ अधिक ही डरा देते हैं , परन्तु उनको ये सब समझाना भी तो जरूरी है अन्यथा वो आज के हालात का सामना नहीं कर पाएंगी | 

इस पूरे प्रकरण में सबसे भयावह स्थिति जो आने वाली है वो यही है कि भविष्य में "मदर्स डे" मनाने के लिए माँ ही नहीं होगी क्योंकि आज की बेटियाँ ही कल की आने वाली पीढी की माँ होती हैं | 
                                                                                                       -निवेदिता 

शनिवार, 5 मई 2012

........

अश्रु 
तुम्हारे 
या मेरे 
दिल में हों 
पलकों में 
या आँखों से
चेहरे पर 
कहीं भी हो 
होते  बोझिल 
उनके साथ 
कभी मैं
कभी तुम 
और अक्सर 
हम दोनों ही 
बहते हुए 
पीछे छूट 
जाते हैं 
लम्हे 
बस इक 
शून्य सा 
छोड़ जाते हैं .......
           -निवेदिता 

बुधवार, 2 मई 2012

उलझे ख्याल


कभी खुद 
अपने ही घर में 
खुद को मेहमान बना के देखें !
सजावटी क्राकरी में 
अपने लिए भी चाय सजाकर देखें !
कभी खुद अपने लिए 
फूलों की रंगीनी को सजा कर देखें ! 
कभी किसी उदास सी  
शाम को रंगों से नहला कर देखें !
कभी यूँ ही भटक कर 
खुद के लिए तोहफे चुन कर देखें ! 
नित घटती जाती साँसों से 
अपने लिए भी इक लम्हा चुरा कर देखें !
निभा चुकी जिम्मेदारियों के बाद 
कभी-कहीं सफर में तन्हा जा कर देखें !
हाँ !सच है ...अपनी दीवारें 
अपनी सीमाएं ,यादों में आ-आ कर 
राहों को थामेंगी जरूर 
अपने अंधेरों से बाहर आने को 
बस इक कदम बढ़ा कर देखें !
इतनी तल्ख भी नहीं ज़िन्दगी 
जरा आँखों से आँखें मिला कर तो देखें ........
                                           -निवेदिता 



मंगलवार, 1 मई 2012

गति-अवरोधक



           हम जब भी यात्रा कर रहे होते हैं ,आस-पास से आती-जाती बहुत सारी बातों पर ध्यान जाता है ,परन्तु जो सुखद और सुरक्षित यात्रा में सबसे अधिक सहायक होता है उस को हम साधारणतया अनदेखा ही कर जाते हैं .... उस पर हमारा ध्यान तभी जाता है जब कहीं ठोकर लगती है अथवा वाहन झटका खा जाता है .... जी हाँ ! मैं गति-अवरोधक की ही चर्चा कर रही हूँ । कभी प्रकृति अपना सौन्दर्य बिखेर हमको मुग्ध कर लेती है ,तो कभी मानवीय निर्माण सडक की गुणवत्ता को हम सराह देते हैं । मार्ग में आने वाले गति-अवरोधक के प्रति अगर अतिरिक्त रूप से सजग रहें तो दुर्घटना की आशंका बहुत कम हो जायेगी ,क्योंकि तब गति हमारे नियन्त्रण में रहेगी हम गति के नियन्त्रण में नही होगे !
          
          आध्यात्म हमारे जीवन को भी एक अनंत यात्रा की ही संज्ञा देता है । हम भी अपने जीवन में अनेक छोटे-बड़े लम्हों में होनी वाली घटनाओं से प्रभावित हो सम्भावित बाधाओं की अनदेखी करते रहते हैं और बाद में अचानक आ जाने वाले गति-अवरोधक पर उछल जाने वाले वाहन की तरह असंतुलित हो जाते हैं । आने वाले सुखद लम्हे के स्वागत में अपनी अतिरिक्त ऊर्जा लगा देते हैं ।उस लम्हे के गुजर जाने के बाद नवीन ऊर्जा संचित करने के लिए कुछ पलों की शान्ति आवश्यक हो जाती है । उन पलों में ,जब हमारा अवचेतन मन ऊर्जा संचित करता है ,एक अजीब से खालीपन का अनुभव होता है ।ये रिक्तता कभी पलायन को भी प्रेरित करती है ,तब एक कामना जागती है कि काश जीवन में भी दूर से ही गति-अवरोधक का चिन्ह दिखाई दे जाए और हम सजग हो जाएँ ..........