समाचार-पत्र हो अथवा समाचार , हत्या का विवरण प्रमुखता से पर्याप्त स्थान घेरे रहता है | हमेशा तो नहीं पर कई बार सोचा इस कृत्य का मूल कारण क्या रहा होगा ! हर बार विभिन्न मन;स्थति ने भिन्न-भिन्न कारण बताये | कभी लगता है कि उस शख्स से कोई ऐसा जघन्य कृत्य हुआ होगा जिसने और कोई रास्ता न छोड़ा होगा ,तो कभी लगता कि नहीं शायद उस का गुनाह कम था पर अहं को ठेस अधिक लगी रही होगी | ये अहं ऐसा कोमल और नाज़ुकमना होता है कि एक नामालूम सा तिनका भी चोट पहुंचा जाता है | इस अपराध के मूल में कभी-कभी सामाजिक दबाव भी प्रभावी हो जाता है | लोगों के बोल ,ताने सांस लेना भी दूभर कर देते हैं |
जब संतुलित हो कर सभी परिस्थितियों का आकलन करती हूँ तो मुझे किसी भी हत्या का इकलौता कारण खुद अपना सामना न कर पाना ही लगता है | सामाजिक दबाव अथवा तनाव तो क्षणभंगुर ही होता है | कितनी भी और कैसी भी विषम चुनौतियाँ रास्ता रोक बढने की गति धीमी तो कर सकती हैं ,परन्तु जैसे ही उनसे निगाहें मिलाने को एक पल को ठिठक जाइए , उन्हें अपना रास्ता बदलने में समय नहीं लगता | कोई भी हत्या जैसी बड़ी घटना को सिर्फ अंजाम तभी दे सकता है ,जब कि वो खुद अपना ही सामना नहीं कर पाता हो | कोई भी घटना घटित तो एक छोटे से लम्हे में ही होती है ,ये तो हमारा कमजोर मन उसको बार-बार सोच-सोच कर पुनर्जीवित किये रहता है | इन्हीं किसी कमजोर लम्हे में व्यक्ति असंतुलित होकर उस घटना के कारण ,अथवा ये कहना चाहिए कि जिसको हम कारण मानते हैं को ही नेस्तनाबूद करना चाहता है |
दुनिया की हर चीज़ ,रिश्ते-नाते छूट जाने के बाद भी ज़िन्दगी ज़िंदा रहती है ,पर खुद अपने को तो हम अपनी आख़री सांस तक नहीं छोड़ सकते | सम्भवत: इसीलिये हत्या जैसे कृत्य करने वाले व्यक्ति को सजा देते समय क़ानून में कुछ ऐसा प्रावधान भी करने का प्रयास करना चाहिए कि व्यक्ति खुद अपना सामना करने का साहस कर सके |
-निवेदिता
हमारा कमजोर मन उसको बार-बार सोच-सोच कर पुनर्जीवित किये रहता है |
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति,,,,,
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जब इतने बड़े विश्व में सारी राहें बन्द सी दिखती हैं तभी ऐसा जघन्य विचार मन में जन्म लेता होगा..
जवाब देंहटाएंबहुत ही व्यापक कारण होते हैं .... जो इतने पहलुओं से सोचता है , वह किसी भी परिणाम पर झट से नहीं जाता . बहुत सही लिखा है - समाचार से परे , उधृत कारणों से परे कई कारण होते हैं
जवाब देंहटाएंह्त्या के पीछे बदले की भावना तो होती ही है साथ में अपनी सुरक्षा के भाव भी प्रबल होते हैं..
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
क्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
हत्या के पीछे कई मनोवैग्यानिक कारण है..सही चितरण...सुन्दर आलेख...
जवाब देंहटाएंअच्छे और गंभीर विषयों पर ध्यान आकर्षित करने और मनन करने का अवसर देने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंदुनिया की हर चीज़ ,रिश्ते-नाते छूट जाने के बाद भी ज़िन्दगी ज़िंदा रहती है ,पर खुद अपने को तो हम अपनी आख़री सांस तक नहीं छोड़ सकते |
जवाब देंहटाएंगहन सोच.....बहुत सुन्दर पोस्ट।
सही चिंतन...
जवाब देंहटाएंसादर।
गहन चिंतन लिए हुए सार्थक आलेख ..
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