बुधवार, 2 मई 2012

उलझे ख्याल


कभी खुद 
अपने ही घर में 
खुद को मेहमान बना के देखें !
सजावटी क्राकरी में 
अपने लिए भी चाय सजाकर देखें !
कभी खुद अपने लिए 
फूलों की रंगीनी को सजा कर देखें ! 
कभी किसी उदास सी  
शाम को रंगों से नहला कर देखें !
कभी यूँ ही भटक कर 
खुद के लिए तोहफे चुन कर देखें ! 
नित घटती जाती साँसों से 
अपने लिए भी इक लम्हा चुरा कर देखें !
निभा चुकी जिम्मेदारियों के बाद 
कभी-कहीं सफर में तन्हा जा कर देखें !
हाँ !सच है ...अपनी दीवारें 
अपनी सीमाएं ,यादों में आ-आ कर 
राहों को थामेंगी जरूर 
अपने अंधेरों से बाहर आने को 
बस इक कदम बढ़ा कर देखें !
इतनी तल्ख भी नहीं ज़िन्दगी 
जरा आँखों से आँखें मिला कर तो देखें ........
                                           -निवेदिता 



14 टिप्‍पणियां:

  1. जीवट ....जिजीविषा से भरी बहुत सुंदर रचना ....
    बधाई एवं शुभकामनायें ....निवेदिता जी ...

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति,प्रभावित करती सुंदर रचना,.....बधाई निवेदिता जी

    MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

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  3. इतनी तल्ख भी नहीं ज़िन्दगी
    जरा आँखों से आँखें मिला कर तो देखें .......
    जीवन के अनगिनत रंगों से सजी प्रेरणात्‍मक अभिव्‍यक्ति।

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  4. नित घटती जाती साँसों से
    अपने लिए भी इक लम्हा चुरा कर देखें !

    ....बहुत सच कहा है..बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

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  5. जिस दिन हम खुद के घर में महेमान बन गए ,उसी दिन से जीवन की सांझ शुरू हो जायेगी ,ऐसा मेरा मानना हैं .....आभार

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  6. bahut sundar kabhi kuch alag kabhi kuch sirf apne liye bhi hina chahiye

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  7. जीवन को आनंद स्वरूप प्रस्तुत करें स्वयं के लिये।

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  8. इतनी तल्ख भी नहीं ज़िन्दगी
    जरा आँखों से आँखें मिला कर तो देखें ....
    सही कहा आपने ,बहुत सुंदर बधाई

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  9. वाह क्या बात है बहुत लिखा है आपने बहुत खूब....

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  10. जीने की राह सुझाती सोच ....उम्दा रचना

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  11. जिन्दगी खूबसूरत है। वैसे किधर जाने का प्रोग्राम बन रहा है! :)

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