गृहणियों के बारे में जब भी सोचा है वो एक लता सरीखी ही लगीं हैं ! आर्थिक और सामाजिक आधार के लिए साथी पर आश्रित सी होती हैं | परन्तु जैसे ही अनुकूल साथ मिल जाता है वो सशक्त रूप में निखर अपने परिवार पर छा सी जाती हैं | बेशक वो अर्थ संचय के लिए कहीं बाहर नहीं जाती हैं ,पर जो भी उनकी आमदनी होती है उसमें पल्लवित होना उनके लिए बहुत सहज रहता है | बेशक कभी उनको घर की नाम-पट्टिका का एक नाम ही माना जाता है ,एक रिक्त स्थान की पूर्ति जैसा ,पर जब वही स्थान कभी शून्य बन जाए तब लगता है कि उस शून्य के रहने से ही शायद घर का प्रारूप कई गुना बढ़ जाता है | बिना किसी बड़े संस्थान में गये ही शायद उनको मैनेजमेंट का गुण विरासत में ही मिल जाता है | इस बात का पता तब चलता है ,जब आप किसी आर्थिक रूप से किसी कमजोर के घर को देखिये वो भी व्यवस्थित ही मिलता है | आर्थिक संकट आने पर वो उसका पता नहीं चलने देतीं ,अपितु उसका सामना करने को तत्पर हो जातीं हैं |
गृहणियों के सामने थोड़ी दिक्कत तभी आती है जब उनके बच्चे बड़े हो कर अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं और उनके पास करने को कुछ ख़ास नहीं बचता है | इस खालीपन का कारण सिर्फ यही रहता है कि सब का ध्यान रखते-रखते वो अपना ध्यान रखना भूल जाती हैं | बच्चों को सुलाने में अपनी नींद भूल जातीं हैं | उनको अक्षरज्ञान कराते-कराते अपने शौक को किनारे कर देती हैं | ऐसा कर के वो कभी कुछ कमी नहीं अनुभव करतीं | बच्चे जब एक-एक कदम बढाते हुए जीवन में व्यवस्थित और प्रतिष्ठित होते हैं वो पल इतने खूबसूरत होते हैं कि उनके आगे बाकी कुछ भी फीका सा लगता है |
जीवनसाथी का साथ इस समय उनको एक नई दिशा देता है | वो ही उनकी भूली-बिसरी अभिरुचियों की याद दिला ,फिर से जीने की एक नई राह दिखाता है और खालीपन को भरने में सहायक होता है | कभी बागबानी , तो कभी लेखन और पठन के नये आयाम मिल जाने से जीवन सहज और परिपूर्ण लगने लगता है और एक संतुष्टि का एहसास मिलता है |
-निवेदिता
जीवन के इस पड़ाव् पर कभी लेखन और पठन से जीने के नये आयाम मिल जाते है जीवन सहज और परिपूर्ण लगने लगता है और एक संतुष्टि का एहसास मिलता है |
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
कोई न कोई अभिरुचि जीवन में रिक्तता आने नहीं देगी..
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुती यहा भी पधारे yunik27.blogspot.com
जवाब देंहटाएंसमायोजन और संतुष्टि-ये दो पैमाने केवल आध्यात्मिक व्यक्तित्वों के जीवन का हिस्सा हैं। इस अर्थ में,गृहिणियों का जीवन विशिष्ट है।
जवाब देंहटाएंगृहणियां संस्कार का पोषण करती हैं. समाज का निर्माण करती हैं... सुन्दर आलेख
जवाब देंहटाएंसुन्दर विषय पर सार्थक आलेख।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है आपने इस आलेख में ... बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति निवेदिता जी....
जवाब देंहटाएंएक गृहणी होने के नाते मुझे लगा आपने हमारे दिल की बात कह दी.....
सादर.
कभी बागबानी , तो कभी लेखन और पठन के नये आयाम मिल जाने से जीवन सहज और परिपूर्ण लगने लगता है और एक संतुष्टि का एहसास मिलता है |
जवाब देंहटाएंsarthak kathan ....apne aap ko vyast rakhna chhen to bahut kuchh hai karne ke liye ...!!
वाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको ....
जवाब देंहटाएंGrihaniyon pr saargarbhit chintan...
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंगृहणी के भूमिका का अच्छा विश्लेषण किया है और उनके साथ पूर्ण न्याय भी. अगर घर सुख - शांति और बच्चे सुसंस्कृत बनते हें तो एक नारी के गृहणी बने रहने पर ही. बुजुर्गों को घर में शरण मिलती है तो इन्हीं के कारण - नहीं तो खाली घर किसी को कुछ दे नहीं पाता है. नारी के कामकाजी होने की विरोधी नहीं हूँ क्योंकि मैं खुद कामकाजी हूँ लेकिन सिर्फ गृहणी होना भी अपने आप में एक त्याग का नाम है. वह सब कुछ वार देती है घर के नाम पर.
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