शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

बचपने वाला बचपन ......


बचपन  .... ये ऐसा शब्द और भाव है कि हम चाहे किसी भी उम्र या मनःस्थिति में हों ,एक बड़ी ही प्यारी सी या कह लें कि मासूम सी मुस्कान लहरा ही जाती है | बच्चे को अपने में ही मगन हाथ पैर चला चला विभिन्न भंगिमाएं बना बना कर खेलते देखते ही ,मन अपनी सारी उलझनें भूल कर उसके साथ ही शिशुवत उत्फुल्ल हो उठता है | बचपन किसी भी तरह की दुनियादारी से अनजाना रहता है ,सम्भवतः इसीलिए वो जिंदगी की विशुद्ध ऊर्जा से आनंदित रहता है |
अक्सर ही सोचती हूँ कि जिंदगी के हर मोड़ पर ,उसकी हर चुनौतियों का सामना करते हुए भी मन बच्चा ही क्यों बनना चाहता है ! जिंदगी के हर पल में अलग अलग सुख होते हैं  .....  शिक्षा प्राप्त करते हुए प्रतिदिन कुछ नया सीखने के चुनौती रहती है तो कभी खुद को साबित कर सामाजिक सरोकारों के अनुसार प्रतिष्ठित स्थान पाने का प्रयास करते हैं | खुद को स्थापित करते हुए ही ,अपनी संतति को भी उनका आधार मुहैय्या करवाने का भी प्रयास सतत चलता रहता है | इन सभी पलों में कुछ पाते और कुछ खोते हुए भी ,अपने अंदर के बच्चे को भी खोजने और पाने का प्रयास अनजाने ही करते हैं | हमारी किसी बचकानी हरकत पर अगर किसी का ध्यान चला जाता है तो हम उसको छुपाना चाहते हैं और फिर से अपनी तथाकथित गंभीरता के आवरण में छुप जाते हैं |
कभी पुराने दोस्तों के साथ रियूनियन के नाम पर इकट्ठा होना ,किसी पार्टी की थीम बचकानी रखना ,बचपन के खेलों को याद करके उनको खेलने का प्रयास करना ,बच्चों के साथ तुतला के बोलना  .... ये और ऐसे ही कई प्रयास करते हैं और खिलखिला पड़ते हैं | विभिन्न प्रयासों से प्राप्त किया बचपन ,क्या सच में बचपन होता भी है  .....
मुझे तो नहीं लगता है कि ये या ऐसी कोई भी हरकत हमकों फिर से बच्चा बना सकती है |
हमारा बचपन सिर्फ तभी तक ज़िंदा रहता है ,जब तक हमारी माँ जीवित रहती हैं | हम कितने भी बड़े हो जाएँ - माता पिता या बाबा दादी भी बन जाएँ पर माँ के सामने हम छोटे से बच्चे ही रहते हैं | उनकी हर याद हर बात में हमारा बचपन अपने विशुद्ध बचपने वाले रूप में तरोताजा रहता है | उनको याद दिलाने की जरूरत नहीं पड़ती अपितु कुछ भी साम्यता दिखने पर ,माँ उस पल में पहुँच जाती हैं | इस काम में उनको पलक झपकने जितना भी समय नहीं लगता | भले ही हमारी पसंद नापसंद ,कितनी भी बदल गयी हो पर उनके पास पहुँचते ही उनके द्वारा बनाया गया मिर्चे के अचार और पराठे वाले लोली पोली (रोली पोली ) दुनिया के सारे व्यंजनों पर भरी पड़  चटखारे दिलवा ही देती है | दुनिया के किसी भी बड़े से बड़े ब्रांड या डिजानर की ड्रेस खरीद लूँ वो भूल भी जाउंगी ,पर यादों में तो आज भी माँ की बनाई हुई ड्रेसेस बसी हुई हैं | बहुत छोटी थी तब मम्मी ने साइड में ढेर साडी फ्रिल वाली ड्रेस बनाई थी ,सुर्ख लाल रंग की ..... मैं खुद भी बहुत सिलाई करती थी ,पर अपनी बनाई कोई भी ड्रेस मुझे नहीं याद।,हाँ ! जिनके लिए बनाई थी वो आज भी जिक्र करते हैं !दो बड़े होते बच्चों की माँ होते हुए भी मेरा बचपना उनके पास पहुँचते ही जैसे कुलांचे मारने लगता था |
जिस दिन अपनी माँ को शांत हुए देखा ,मेरे अंदर का बच्चा भी मर गया | अथक प्रयास किया ,फिर से वही जीवंतता ओढ़ने का पर न हो पाया | ये प्रयास छन्नी में पानी रोकने के प्रयास जैसा निष्फल ही रहा |
मैं भी एक माँ हूँ ,शायद इसलिए सप्रयास बच्चों के साथ बच्चा बनी  .... अब जब बच्चे बड़े हो गए हैं ,तो वो अपने दुलार से मेरा बचपना ज़िंदा रखना चाहते हैं  .... पर सच कहूँ तो मेरा बचपन जिन्दा हो जाता है पर वो बचपने वाला बचपन तो माँ के साथ ही दम तोड़  गया  ...... निवेदिता

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

शिकायत थी जिंदगी से ......

शिकायत थी जिंदगी से
कभी कोई हमनवां नहीं मिलता .... 

आज सोचती हूँ ( तो )
समझती हूँ कि मिलता है ,
और अक्सर ही मिलता है .... 

बस कभी उनको तो
कभी हमको समझ नही आता ....
दोनों समझ सकें बस
वो लम्हा नहीं मिलता ..... निवेदिता

सोमवार, 9 जुलाई 2018

ईश्वरीय प्रतिमान .......

 
ईश्वरीय तत्वों के एकाधिक मुख और हाथ होने के बारे में हम पढ़ते और सुनते आए हैं ,परन्तु कभी इसका कारण अथवा औचित्य जानने का प्रयास ही नहीं किया । सदैव एक अंधश्रध्दा और संस्कारों के अनुसार मस्तक नवा कर नमन ही किया है । आज अनायास ही इसपर विभिन्न विचार मन में घुमड़ रहे थे और मैं उनकी भूलभुलैया में भटकती अनेक तर्क वितर्क स्वयम से ही कर रही थी । कभी सोचती कि आसुरी तत्वों का विनाश करने के लिये एकाधिक हाथों की आवश्यक्ता है ,अगले ही पल सोचती कि सृजन करने के लिये ऐसी लीला रची होगी ईश्वर ने । 
इन और ऐसे ही अनेक विचारों से जूझ रही थी कि लगा कि ये समस्त तर्क उचित नहीं । ईश्वर का होना किसी समस्या के समाधान से कहीं अधिक है हमारे अंदर समाहित असीमित क्षमताओं का ज्ञान होना । ईश्वर भूख लगने पर सिर्फ भोजन करा के ही तृप्त नहीं करते अपितु भोजन बनाने के साधन से भी परिचित कराते हैं । 
ईश्वरीय प्रतिमान के कई मुख और हाथ हमारे अंदर छिपी हमारी सामर्थ्य के परिचायक हैं । हम सबमें अपार सम्भावनायें छुपी हैं ,जिनको कभी किसी की प्रेरणा से हम जान पाते हैं और कभी सब कुछ अनजाना रह कर ,अपनी धार्मिक मान्यतानुसार चिता की दाहक अग्नि में समा जाता है ।

समय पर अगर अपने अंदर छुपी इस सम्भावना को पहचान लिया जाये तो अपने साथ ही साथ समष्टि के भी हित में होगा । अकेलापन ,उदासी ,अवसाद जैसी तमाम नकारात्मक भावों से मुक्ति पाने के लिये ये सबसे प्रभावशाली अस्त्र प्रमाणित होगा । 

जब भी ऐसे किसी भी ईश्वरीय प्रतिमान की अर्चना करें तो एक बार अपने अंदर की अतल गहराइयों में छुपी हुई ऐसी किसी भी सम्भावना पर पड़ी हुई धूल को भी जरूर बुहार कर स्वच्छ कर लेना चाहिए  .... निवेदिता