इन और ऐसे ही अनेक विचारों से जूझ रही थी कि लगा कि ये समस्त तर्क उचित नहीं । ईश्वर का होना किसी समस्या के समाधान से कहीं अधिक है हमारे अंदर समाहित असीमित क्षमताओं का ज्ञान होना । ईश्वर भूख लगने पर सिर्फ भोजन करा के ही तृप्त नहीं करते अपितु भोजन बनाने के साधन से भी परिचित कराते हैं ।
ईश्वरीय प्रतिमान के कई मुख और हाथ हमारे अंदर छिपी हमारी सामर्थ्य के परिचायक हैं । हम सबमें अपार सम्भावनायें छुपी हैं ,जिनको कभी किसी की प्रेरणा से हम जान पाते हैं और कभी सब कुछ अनजाना रह कर ,अपनी धार्मिक मान्यतानुसार चिता की दाहक अग्नि में समा जाता है ।
समय पर अगर अपने अंदर छुपी इस सम्भावना को पहचान लिया जाये तो अपने साथ ही साथ समष्टि के भी हित में होगा । अकेलापन ,उदासी ,अवसाद जैसी तमाम नकारात्मक भावों से मुक्ति पाने के लिये ये सबसे प्रभावशाली अस्त्र प्रमाणित होगा ।
जब भी ऐसे किसी भी ईश्वरीय प्रतिमान की अर्चना करें तो एक बार अपने अंदर की अतल गहराइयों में छुपी हुई ऐसी किसी भी सम्भावना पर पड़ी हुई धूल को भी जरूर बुहार कर स्वच्छ कर लेना चाहिए .... निवेदिता
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सिने जगत के दो दिग्गजों को समर्पित ९ जुलाई “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सोचने लगे
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-07-2018) को "चक्र है आवागमन का" (चर्चा अंक-3029) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी