चाहती हूँ देखना
तुम्हे तुम्हारी सम्पूर्णता में
बस एक कदम की ही तो
ये नामालूम सी दूरी है बनाई
सुनो तुम जानते हो न
निगाहों की भी उम्र होती है ..... निवेदिता
तुम्हे तुम्हारी सम्पूर्णता में
बस एक कदम की ही तो
ये नामालूम सी दूरी है बनाई
सुनो तुम जानते हो न
निगाहों की भी उम्र होती है ..... निवेदिता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-05-2017) को "गीदड़ और विडाल" (चर्चा अंक-2977) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बेहतरीन ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए है ये छोटी सी रचना।
जवाब देंहटाएंप्रेमी के एक कदम की दूरी से उसे आधा किये हुए है
वो नजदीक आये सांस में सांस घुले
और तब दो बदन होंगें पर एक जान होगी और होगी सम्पूर्णता।
निगाहों की भी उम्र होती है... इस पंक्ति में लम्बा इंतज़ार सम्पूर्ण हो जाने का एक हो जाने का।
क्यों सही व्याख्या की है ना ?
आप मुझे ईमेल से रिप्लाई कर सकती हैं - rohitasghorela@gmail.com
बहुत ही गहन अनुभूतियों का आइना है ये छोटी सी रचना !!!!
जवाब देंहटाएंनिगाहों की भी उम्र होती है...
जवाब देंहटाएंइंतजार की सजा भी निग़ाहें ही भोगती हैं ना...राह निहारते हुए...छोटी सी किंतु खूबसूरत रचना ।
बहुत सुंदर दी
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