"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
कभी कभी
ये हँसी
उमगती है
किलकती है
बस एक
झीनी सी
ओट दे जाने को
और आँसुओं को
ख़ुशी के जतलाने को
और हाँ
ये आँसू भी तो
बेसबब नही
इनसे ही तो
बढ़ जाता
नमक जिंदगी में!
✍️निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ