बुधवार, 9 अप्रैल 2025

अन्तिम प्रणाम 🙏

आ गयी जीवन की शाम

करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

रवि शशि की बरसातें हैं
अनसुनी बची कई बातें हैं।
प्रसून प्रमुदित हो हँसता
भृमर गुंजन कर कहता।
किस ने लगाए हैं इल्जाम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

कुछ हम कहते औ सुनते
बीते पल की थीं सौगाते।
प्रणय की नही अब ये रजनी
छुड़ा हाथ चल पड़ी है सजनी।
समय के सब ही हैं ग़ुलाम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

जाती हूँ अब छोड़ धरा को
माटी की दी बाती जरा वो।
जर्जर हो गयी है अब काया
मन किस का किस ने भरमाया।
तन के पिंजरे का क्या काम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!
✍️ निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

      लखनऊ 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अंतिम प्रणाम की बात न करें …अभी तो सृजन बाकी है…बात बाकी है😊

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  2. ऐसी बातें only me लिखकर पोस्ट की जानी चाहिए। मित्र अंतिम प्रणाम नहीं स्वीकार करेंगे। 😳

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  3. अपने होश में जो अंतिम प्रणाम सकता है, वह भला कभी मर सकता है

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  4. दिल का दर्द बयां करती सुंदर रचना।

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