गुरुवार, 6 जनवरी 2011

हाँ , हूं मैं आज की नारी ....

हाँ , हूं मै आज की नारी ,
आवाज होते ही निकल आती हूं ,
सामना करने को
हर आहट का ,हर आघात का ,
बांटने को दूसरों का भार ,
पर मन ही मन ,
डरती भी हूं ...
पलट कर देखती भी हूं ,
पीछे आने वाले क़दमों को ,
कहीं उनके कुत्सित इरादों
के दायरों में मैं तो नहीं ,
अपनी पिछली पीढ़ी के
संस्कारों के साथ ,
कोशिश करती हूं
देने का साथ
अपनी नयी पीढी का ,
शायद इसीलिये
हाँ , हूं मैं आज की नारी  !

4 टिप्‍पणियां:

  1. सीमित शब्दों में बहुत ही खूबसूरती से आज की नारी को परिभाषित किया है.

    सादर

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  2. पहली बार आपको पढ़ा है !अच्छा लगा ...

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  3. सही है...अच्छा लगा...कुछ ऐसा ही कभी मैंने लिखने की कोशिश की थी.
    -मैं हूँ आज की नारी

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  4. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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