चलिए आज एक बार फिर बापू को याद कर लें और उनकी ही आत्मा को सोचने पर मजबूर करें कि क्यों उन्होंने अपने सीने पर गोली खाई, हम जैसे लोगों के लिए जिनके पास आत्मा है ही नहीं और संवेदनाएं रास्ता भूल गई हैं | आज बापू के चित्र को सबसे ज्यादा माला वही लोग पहनायेगे जिनको उनके आदर्श भूल गए है |
उन को सिर्फ इतना याद है कि साल में दो दिन --गांधी जयंती और शहीद दिवस --गांधीजी के चित्र पर माला डालना है ,पहनाना या चढ़ाना नहीं |
इन तथाकथित नेताओं को ही हम क्यों कुछ भी कहें जब कि इसके ज़िम्मेदार हम खुद ही हैं | इन महानुभावो को चुनने का -- बार बार चुनने का --काम हम ही करते हैं ,कभी अपने मत का प्रयोग कर के और कभी मतपत्र को एक टिशु पेपर समझ कर | मत ना देने के कई बहाने भी हम यूं ही खोज लेते है -कभी मौसम तो कभी व्यक्तिगत व्यस्तता | जब इन बहानों से काम नहीं चलता तब कह देते है एक मत से क्या बदल जाएगा
हम किसी गलत काम का दायित्व नहीं ले सकते | हम कुछ सुधार नहीं सकते तो गलत का साथ भी नहीं दे रहे है | एक बार ये भी सोच कर देख लें कि क्या ये सच है अथवा सिर्फ मनबहलाव | मुझे तो ये लगता है कि अपने मत को नष्ट कर के हम अपना ही नुक्सान करते हैं | अपने जिन बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए कोई भी कमी नहीं रखते हैं ,उन्हें हम कैसा समाज विरासत में दे जायेगें | उस विकृत स्थिति के लिए हमारा अपने मत का इस्तेमाल ना करना ही कारण होगा |
अगर सच्चे दिल से हम अपने राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देना चाहते है तो माल्यार्पण के पहले खुद से ये वादा करें कि अपने मत का प्रयोग अवश्य करेगें | बापू के सपनों के भारत को कुछ तो आकार देंगे | ये सब हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सौगात में देने के लिए करेंगे जिससे बापू को याद कर के वो भी गौरवान्वित महसूस कर सकें !!
किसी भी पर्व को मनाने की परम्परा में एक विधान हम भी जोड़ लें --समाज की या कहें अपनी किसी कमी अथवा बुराई को छोड़ने की शुरुआत कर के ..........|
उन को सिर्फ इतना याद है कि साल में दो दिन --गांधी जयंती और शहीद दिवस --गांधीजी के चित्र पर माला डालना है ,पहनाना या चढ़ाना नहीं |
इन तथाकथित नेताओं को ही हम क्यों कुछ भी कहें जब कि इसके ज़िम्मेदार हम खुद ही हैं | इन महानुभावो को चुनने का -- बार बार चुनने का --काम हम ही करते हैं ,कभी अपने मत का प्रयोग कर के और कभी मतपत्र को एक टिशु पेपर समझ कर | मत ना देने के कई बहाने भी हम यूं ही खोज लेते है -कभी मौसम तो कभी व्यक्तिगत व्यस्तता | जब इन बहानों से काम नहीं चलता तब कह देते है एक मत से क्या बदल जाएगा
हम किसी गलत काम का दायित्व नहीं ले सकते | हम कुछ सुधार नहीं सकते तो गलत का साथ भी नहीं दे रहे है | एक बार ये भी सोच कर देख लें कि क्या ये सच है अथवा सिर्फ मनबहलाव | मुझे तो ये लगता है कि अपने मत को नष्ट कर के हम अपना ही नुक्सान करते हैं | अपने जिन बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए कोई भी कमी नहीं रखते हैं ,उन्हें हम कैसा समाज विरासत में दे जायेगें | उस विकृत स्थिति के लिए हमारा अपने मत का इस्तेमाल ना करना ही कारण होगा |
अगर सच्चे दिल से हम अपने राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देना चाहते है तो माल्यार्पण के पहले खुद से ये वादा करें कि अपने मत का प्रयोग अवश्य करेगें | बापू के सपनों के भारत को कुछ तो आकार देंगे | ये सब हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सौगात में देने के लिए करेंगे जिससे बापू को याद कर के वो भी गौरवान्वित महसूस कर सकें !!
किसी भी पर्व को मनाने की परम्परा में एक विधान हम भी जोड़ लें --समाज की या कहें अपनी किसी कमी अथवा बुराई को छोड़ने की शुरुआत कर के ..........|
बिलकुल सही बात कही है आपने.
जवाब देंहटाएंआखिर भ्रष्ट लोगों को सत्ता का स्वाद हम ही लोग चखाते हैं और नाम लगाते है की सरकार कुछ करती ही नहीं.
गांधी जी के आदर्शों को धारण करने की आवश्यकता है न की उनकी मूर्ती पर माला डालने की.यही सच्ची श्रद्धांजली होगी.
सादर
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बापू! फिर से आ जाओ
बहुत सार्थक श्रद्धांजली गांधी जी को..
जवाब देंहटाएंबापू की याद में अगर इतना भी कर सकेंगे तो सच्ची श्रधंजलि होगी उनके प्रति ....
जवाब देंहटाएंसच लिखा है वोट ... इस्तेमाल ज़रूर करें ...
अछ्छी प्रस्तुति...बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी
जवाब देंहटाएं" बापू के बहाने से ........" आलेख के द्वारा अपने अनेक सार्थक और महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं ।
मतदान की आवश्यकता से मैं भी सहमत हूं ।
समाज को आपके विचारों का समर्थन करना चाहिए …
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बापू को याद करते हुए आपने काफी कुछ कह दिया....
जवाब देंहटाएंजो कुछ ना कर सको एक दिन का उपवास ही रख लो.....
देखो इतना छोटा सा व्रत (संकल्प) भी ले सकते हो की नहीं.
आगे की आगे सोच लेना...
आप सब का धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया सोच और अच्छी सलाह !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें