पर इस खामोशी में जो आवाज़ है ,
विरक्ति की ......
इस गुमसुम शोर में
क्या ये है तुम्हारी ...
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी ..
बेचैन सहजता !
क्यों तुम्हारे ...ये अविचारे विचार ...
एक सन्नाटा बन
दम घोंटते हैं...
मेरे ज़ेहन में !
तू है मेरा ...
हाँ , सिर्फ़ मेरा ...
बहुत हसीं ख़्वाब !
क्यों ले आता है
जहां की कड़वाहट ...
अपने बीच !
ले भी आता है तो
क्यों नहीं छोड़ देता ...
वो सब मेरे पास !
तुम्हारे लिये तो ...
नीलकंठ बन कर
विषपान कर
शिव बन जाऊँ !
देखने वाली आँखें
रहे न रहे ....
ख़्वाब सलामत रहे !
ख़ामोशी की आवाज //
जवाब देंहटाएंवाह ..बेहद उम्दा
खामोश ख्वाब , बहुत सुंदर रचना ,
जवाब देंहटाएंkhwab salamat rahe
जवाब देंहटाएंkhubsurat rachna
is bar mere blog par
"main"
निवेदिता जी,
जवाब देंहटाएंइस गुमसुम शोर में
क्या ये है तुम्हारी ...
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी ..
एक दम तोड़ती
बेचैन सहजता !
उपरोक्त पंक्तियों में दर्द अपनी पूरी अभिव्यक्ति में रीत रहा है लेकिन कहीं विषपान कर शिव हो जाना तेरे लिये एक राग पैदा कर विरोधाभास को जन्म दे रहा है।
यह दोनों अपने में अलग-अलग व्यक्त किये जा सकते हैं......
ख़्वाब सलामत रहे !
एक उम्मीद जगाती हुई पंक्तियाँ।
नववर्ष की शुभकामनायें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी पोस्ट यहाँ भी है……नयी-पुरानी हलचल
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
waah ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारे लिये तो ...
जवाब देंहटाएंनीलकंठ बन कर
विषपान कर
शिव बन जाऊँ !
देखने वाली आँखें
रहे न रहे ....
ख़्वाब सलामत रहे !
बहुत बढ़िया.
सादर
तुम्हारे लिये तो ...
जवाब देंहटाएंनीलकंठ बन कर
विषपान कर
शिव बन जाऊँ !
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..समर्पण भाव से लिखी रचना
वाह ..नई पुरानी हलचल ने बहुत ही सुन्दर रचना से परिचय कराया.
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