शनिवार, 8 जनवरी 2011

" जीवन "

जीवन ! तू कितना मधुर है सबके लिये
             सच तू जीने योग्य है   भोगने   है  !
तू आकर्षक है......
              तू याद रखने योग्य है औरों के लिये
फ़िर क्यों तू ...
              इतना रूठा हुआ सा अजनबी है मेरे लिये !
मैने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया
               जो तुझे चुभे ,न  ही जान कर न अनजाने में!
ये तो मेरी ही बदकिस्मती है
              तू जो इतना कठोर इतना शुष्क है मेरे प्रति !
मुझे दुख है , हो सकता है औरों को भी
                हो मेरे दुख का दुख !
किन्तु तू क्यों इतना छलनामयी है
                 अफ़सोस है बेहद अफ़सोस !
मगर इस सबसे बड़ी त्रासदी है
                 इस अफ़सोस का अफ़सोस
                           और   निरर्थक     प्रतीक्षा
       अनदेखे अनजाने पल और सपने की  ! ! ! !

2 टिप्‍पणियां:

  1. "...इस अफ़सोस का अफ़सोस
    और निरर्थक प्रतीक्षा
    अनदेखे अनजाने पल और सपने की ! ! ! ! "

    बहुत ही गहरे जज़्बात उड़ेल दिए हैं इस कविता में.लगता है भावना में डूब कर इन पंक्तियों को लिखा गया है.

    सादर

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  2. भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आप इतना अच्छा लिखती है.. की पढ़कर मैं भी भावों की दुनिया में खो जाता हूँ .... आभार

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