खुशियों भरे ये पल
इन्द्रधनुष से
झांकते बादलों से ,
माँ की गोद से
झांकते लाडले की तरह !
छुपा लूँ ...
हर निगाह से ,
लगा न दे कोई नज़र ,
कर न दे कोई
टोटका कहीं !
आज होना था
मेरे पास मेरी माँ को !
छुपा लेती मुझे
आंचल में अपने ...
छा जाती मुझ पे
इक ढ़ाल की तरह !
रोक लेती इन पलों को
मेरे लिये ......
मेरी खुशियों पर
लगा जाती इक
नज़रटीका ...
मैं निभाती अपना फ़र्ज़
ले जाती इन सुख भरे पलों को
विरासत जैसे
अपने दुलारों तक ,
माँ होने का हक निभाती ,
और बन जाती मैं भी
इक नज़रटीका
अपने लाडलों का !
सहेज लेती इस
इन्द्रधनुषी खुशीको
अनन्त युगों के लिये !
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण कविता.
जवाब देंहटाएंसादर
माँ होने का हक निभाती ,
जवाब देंहटाएंऔर बन जाती मैं भी
इक नज़रटीका
अपने लाडलों का !
सहेज लेती इस
इन्द्रधनुषी खुशीको
अनन्त युगों के लिये !
sundar abhivyakti
बहुत ही सुंदर ...और सच से रूबरू करती सरपट दौड़ती है बधाई
जवाब देंहटाएंखुबसूरत एहसासों को समेटे हुई रचना !
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है !
आदत.......मुस्कुराने पर
जवाब देंहटाएंकिस बात का गुनाहगार हूँ मैं....संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
बच्चों के लिए माँ अंधविश्वासी भी हो जाती है ..खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
वाह!!! एक नया अंदाज़ और अभिलाषा
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