जानती हूं मन का भटकाव असीम है
इसीलिये तो भटकती जाती हूं ,
कोशिश करती हूं ,
उलझन सुलझाने की
इसीलिये तो और उलझती जाती हूं
शायद इसी उलझाव भटकाव में ही
पाऊं कभी राह कोई
न सही जी. टी. रोड, कोई धूमिल सी
पगडंडी ही सही
उस पगडंडी को राजमार्ग सा भव्य
बना लूंगी मैं
अगर न भी बना पायी तो किसी
पहाड़ के कोने में
उपेक्षित पड़े देवालय की
शान्ति ,खोज ही लाऊंगी
पर द्वार तुम्हारे न जाऊंगी
कभी याचना के लिये
तुम आओ तो स्वागत है सदा
पर याद रखना ,जब भी आना
अपनी और मेरी भी
सीमारेखा को समझ कर ही आना ...
गहरी बात की सहज अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसादर
गहरे भाव लिए पंक्तियां.
जवाब देंहटाएंमगर (कई बार यूँ भी होता है,
ये जो मन की सीमारेखा है;
मन तोडने लगता है...)
भटकते मन के भटकते और गहराई में सोचते हुए शब्दों का संकलन.. अच्छी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआभार