मानती हूँ साथ न चल पाओ
तो दूसरी राह बढ़ना है बेहतर
न पहचान पाओ तो कौन कहता है
पहचानने का करो अभिनय उम्र भर
पर ये भी सच है ,इतना ही था ठहराव
क्यों आये पतझर में बहार की तरह
ज़िन्दगी की राह में माइलस्टोन की तरह
प्रतीति दिला कर ओझल हो गये नज़र से
तुम से तो चाहा था नेह भरा मन आंगन
क्यों पथ में अंगार बिछाते चले गये
कुछ देना तो दूर जो पास था
वो भी चुरा कर छिपा चले
मानव की तो विडंबना ही है ये
तुम क्यों ग़ैरज़िम्मेदाराना ढ़ंग से
भटकाव बढ़ा चले ! ! ! !
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंसादर
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मिले सुर मेरा तुम्हारा - नया बनाम पुराना
ज़िन्दगी की राह में माइलस्टोन की तरह
जवाब देंहटाएंप्रतीति दिला कर ओझल हो गये नज़र से
तुम से तो चाहा था नेह भरा मन आंगन
क्यों पथ में अंगार बिछाते चले गये
क्या बात है..बहुत खूब....गहरी कशमकश . खूबसूरत अभिव्यक्ति. शुभकामना
अंतरद्वन्द "...शायद ये भी शीर्षक हो सकता था ..खैर ।
जवाब देंहटाएंमुझे तो कविता की मटेरिअल से मतलब है ..और वह प्रशासनीय है
निवेदिता जी बधाई
बिलकुल सॉफ्ट "इल्तिजा"
जवाब देंहटाएं"पर ये भी सच है ,इतना ही था ठहराव
क्यों आये पतझर में बहार की तरह...
कुछ देना तो दूर जो पास था
वो भी चुरा कर छिपा चले..... "
मानव के मन में अंतरद्वन्द अथाह हैं जिसके भाव आपके कविता में बेहतरीन प्रस्तुति हैं :)