मन की छुअन को छूते
दुलराते सहज स्नेहिल
भाव तुम्हारे ...........
जीवन की ढलती दोपहरी में
छाया बन सहेजते
हर चुभन ................
कभी चांदनी कभी फुहार बन
लहराती फगुनहट सी
इन्द्रधनुषी चमक ..........
पल-पल बहती जीवन नदिया
भंवर -किनारों से बचते -बचाते
आ पहुंची मंजिल तक ......
लो फिर याद आते
भाव तुम्हारे ................
दुलराते सहज स्नेहिल
भाव तुम्हारे ...........
जीवन की ढलती दोपहरी में
छाया बन सहेजते
हर चुभन ................
कभी चांदनी कभी फुहार बन
लहराती फगुनहट सी
इन्द्रधनुषी चमक ..........
पल-पल बहती जीवन नदिया
भंवर -किनारों से बचते -बचाते
आ पहुंची मंजिल तक ......
लो फिर याद आते
भाव तुम्हारे ................
क्या बात है निवेदीता जी........बहुत ही साहित्यीक और उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई...........शुभकामनाएँ.....
जवाब देंहटाएंअरे....फागुन आ गया क्या....
जवाब देंहटाएंक्या बात है.....
अच्छा सन्देश था....ये काम है कवियों का....
सच है, कितने प्यारे, भाव तुम्हारे।
जवाब देंहटाएंवाकई ...इतनी अच्छी कविता बहुत दिनों बाद पढने को मिली.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूबसूरत रचना...बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही साहित्यीक और उत्कृष्ट रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउत्साह्वर्धन के लिये आप सब विद्वजन का आभार .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर है भाव भरे शब्द तुम्हारे !
जवाब देंहटाएं