अजीब सा लग रहा है ना ,ये पढ़कर कि चलो अंधविश्वासी हो
जाएं ! दरअसल कल रात सोते-सोते लगा कभी-कभार ऐसा भी
कर के देखा जाए ,विश्वास ही नहीं करें ,अपितु इस विश्वास को अंधा भी कर लें ।इतनी भूमिका पर्याप्त होनी चाहिये ।कल गणेश चौथ का व्रत रखा था ,जो मैं सिर्फ़ अपने ही नहीं सभी के बच्चों की मंगलकामनाओ के लिये रखती हूँ ।कल पूरे दिन मन थोड़ा अशांत सा था या यूँ कहूँ कि थोड़ी उलझन सी थी, इस साल बच्चे पास जो नहीं हैं ।पढ़ाई के लिये हॉस्टल में हैं । तिल -गुड़ के बकरे की जो आकृति बच्चे चढ़ाते हैं ,वो विधि कैसे होगी ।ख़ैर हर उलझन का एक इलाज, बच्चों के पिताश्री ने उस विधि को पूरा कर के पूजा संपन्न करा दी ।जैसे ही मैं पूजन पूरा कर के उठ रही थी कि एक छोटा सा चूहा ,जो हमारे घर में कभी नहीं दिखाई पड़ता, चहलकदमी
करता दिखा और स्वतः ही मैं बोल उठी -अरे गणपति वाहन -और
मन एक तरह से शांत हो गया ।थोड़ी देर बाद एक़दम से ये ख़्याल
आया कि मै,एक तथाकथित रूप से वो गृहणी जो अंधविश्वा्सों
से बहुत दूर ही रहती है ,कैसे इस तरह का अंधविश्वास कर गई ।
बस तभी से सोच रही हूं कि अगर कभी-कभार थोड़ा सा ईश्वर की सत्ता के प्रति अंधविश्वासी हो जायें और मानसिक सुकून मिल जाए तो कोई बुराई नहीं है !
चलिये ये भी सोच लेते हैं कि किन बातों के प्रति अंधविश्वासी हो सकते हैं या होना चाहिए ।बचपन में माँ को कहते सुना था कि रसोई कभी खाली नही करनी चाहिए ,थोड़ा सा खाना बच जाना चाहिये।कारण पूछने पर माँ ने कहा कि बचा हुआ खाना हम खुद तो खायेगें नहीं पर इस बहाने से किसी पशु-पक्षी को जरूर मिल जायेगा । इस शहरीकरण के दौर में सबसे ज्यादा परेशान ये पशु-पक्षी ही हुए हैं जिनके प्रति हम संवेदनहीन हो गये हैं।
इसी कड़ी में एक क़दम और -कन्यादान को सबसे बड़ा पुण्य कहा गया है ,यदि वह कन्या किसी जरूरतमंद अथवा आर्थिक
रूप से किसी कमजोर की हो तो यह कार्य अति-उत्तम हो जाता है ।
हम पूरे आयोजन का भार न वहन कर सकें तब भी आंशिक भागीदार
अवश्य बन सकते हैं ।
ठंड के दिनों में बेशक हम किसी संस्था तक ना पहुँच पायें ,पर अपने दरवाज़े पर कूड़ा उठाने वाले को ठंड में सिकुड़ते देख कर अनदेखा ना करें ।पौधों में पानी डालते माली को एक प्याला ग़रम चाय दे के तो देखें ।उन चेहरों पर आया सुकून आपको बहुत
शांति देगा ।शायद ये आपको मानवता लग रही हो ,परन्तु एक
अंधविश्वास ये भी है कि हम उस ईश्वर की कृति को संतुष्ट कर पायें
जिसकी सामर्थ्य हमें ईश्वर ने दी है ।
इस दिशा में सोचे तो ये कड़ी बहुत दूर तक जाएगी ।तब
चलिये थोड़ा सा अंधविश्वासी हो जाते हैं और बहुत सारा सुकून और
आत्मबल अपने मन मे संजो लेते हैं !
जाएं ! दरअसल कल रात सोते-सोते लगा कभी-कभार ऐसा भी
कर के देखा जाए ,विश्वास ही नहीं करें ,अपितु इस विश्वास को अंधा भी कर लें ।इतनी भूमिका पर्याप्त होनी चाहिये ।कल गणेश चौथ का व्रत रखा था ,जो मैं सिर्फ़ अपने ही नहीं सभी के बच्चों की मंगलकामनाओ के लिये रखती हूँ ।कल पूरे दिन मन थोड़ा अशांत सा था या यूँ कहूँ कि थोड़ी उलझन सी थी, इस साल बच्चे पास जो नहीं हैं ।पढ़ाई के लिये हॉस्टल में हैं । तिल -गुड़ के बकरे की जो आकृति बच्चे चढ़ाते हैं ,वो विधि कैसे होगी ।ख़ैर हर उलझन का एक इलाज, बच्चों के पिताश्री ने उस विधि को पूरा कर के पूजा संपन्न करा दी ।जैसे ही मैं पूजन पूरा कर के उठ रही थी कि एक छोटा सा चूहा ,जो हमारे घर में कभी नहीं दिखाई पड़ता, चहलकदमी
करता दिखा और स्वतः ही मैं बोल उठी -अरे गणपति वाहन -और
मन एक तरह से शांत हो गया ।थोड़ी देर बाद एक़दम से ये ख़्याल
आया कि मै,एक तथाकथित रूप से वो गृहणी जो अंधविश्वा्सों
से बहुत दूर ही रहती है ,कैसे इस तरह का अंधविश्वास कर गई ।
बस तभी से सोच रही हूं कि अगर कभी-कभार थोड़ा सा ईश्वर की सत्ता के प्रति अंधविश्वासी हो जायें और मानसिक सुकून मिल जाए तो कोई बुराई नहीं है !
चलिये ये भी सोच लेते हैं कि किन बातों के प्रति अंधविश्वासी हो सकते हैं या होना चाहिए ।बचपन में माँ को कहते सुना था कि रसोई कभी खाली नही करनी चाहिए ,थोड़ा सा खाना बच जाना चाहिये।कारण पूछने पर माँ ने कहा कि बचा हुआ खाना हम खुद तो खायेगें नहीं पर इस बहाने से किसी पशु-पक्षी को जरूर मिल जायेगा । इस शहरीकरण के दौर में सबसे ज्यादा परेशान ये पशु-पक्षी ही हुए हैं जिनके प्रति हम संवेदनहीन हो गये हैं।
इसी कड़ी में एक क़दम और -कन्यादान को सबसे बड़ा पुण्य कहा गया है ,यदि वह कन्या किसी जरूरतमंद अथवा आर्थिक
रूप से किसी कमजोर की हो तो यह कार्य अति-उत्तम हो जाता है ।
हम पूरे आयोजन का भार न वहन कर सकें तब भी आंशिक भागीदार
अवश्य बन सकते हैं ।
ठंड के दिनों में बेशक हम किसी संस्था तक ना पहुँच पायें ,पर अपने दरवाज़े पर कूड़ा उठाने वाले को ठंड में सिकुड़ते देख कर अनदेखा ना करें ।पौधों में पानी डालते माली को एक प्याला ग़रम चाय दे के तो देखें ।उन चेहरों पर आया सुकून आपको बहुत
शांति देगा ।शायद ये आपको मानवता लग रही हो ,परन्तु एक
अंधविश्वास ये भी है कि हम उस ईश्वर की कृति को संतुष्ट कर पायें
जिसकी सामर्थ्य हमें ईश्वर ने दी है ।
इस दिशा में सोचे तो ये कड़ी बहुत दूर तक जाएगी ।तब
चलिये थोड़ा सा अंधविश्वासी हो जाते हैं और बहुत सारा सुकून और
आत्मबल अपने मन मे संजो लेते हैं !
मेरे अंधविश्वासों ने कभी हानि नहीं पहुँचायी है। अंधविश्वास तो आधुनिक विज्ञान सापेक्ष है, जब विज्ञान उसका उत्तर ढूढ़ लेगा, वह अंधविश्वास भी न रह जायेगा।
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख सोचने को मजबूर करता है.
जवाब देंहटाएंसादर
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क्या आज क़े नौजवान नेताजी का पुनर्मूल्यांकन करवा सकेंगे?
बड़ी अच्छी-अच्छी बातें लिखी हैं जी आपने.
जवाब देंहटाएंमुझे ये सब अंधववीशवास नही बल्कि भोले भाले मन की निराशा से आशा में जीने का प्रयंत लगता है ...
जवाब देंहटाएंसही सलाह!
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंhttp://hamarbilaspur.blogspot.com/
अन्ध्विस्वास के प्रति विस्वास जागता लेख. अंधविश्वास अगर हम पर हावी ना हो तो इसमें कोई बुराई नहीं....कोई खुशी जो किसी और को कष्ट दिए बिना मिले वो अच्छेई है....
जवाब देंहटाएंसब आनंद से जियें....
गणतंत्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंपरोपकार के भाव के साथ किये गए कार्य सदैव मन को शांति देते हैं ।सीखप्रद सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विषय पर आपने कलम चलायी है, ईश्वर पर विश्वास करना यदि अंधविश्वास है तो इसे सबको करना ही चाहिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब! यदि विश्वास (मैं इसे अंध ना कहकर ,विश्वास कहूंगी ) दिल को सुकून देता है ,तो लाभ ही है ।
जवाब देंहटाएंऐसे अंधविश्वास जो मन को.खुशी दे जाए जरूर करें हम सब।
जवाब देंहटाएंसही कहा मन को सकून और दूसरों का भला करने वाला अंधविश्वास भी अच्छा ही है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक लेख ।