अरे ........क्या ..........
ये है, तुम्हारी .......
...........भावना .......
शब्द ?......हां......
सच ....
शब्द ही तो है .....
....बहुत छोटा ...
पर..... कामना बड़ी ....
शायद .....तुम्हे .....
छोटापन ....ही....
है भाता ...
शब्द को तो करते ही रहे
याद ....पर .......
भूल गए ......
क्या ...
इसके अहसासात !
हां ,मानती हू ....
गल्ती ...
मेरी ही थी
तुम्हारे लिए तो.........फूल...
हां बनना तो चाहा
फूल ही
पर ......
तुम्हे तो भाता........
काटों का ही ........
साथ ..........................
ये है, तुम्हारी .......
...........भावना .......
शब्द ?......हां......
सच ....
शब्द ही तो है .....
....बहुत छोटा ...
पर..... कामना बड़ी ....
शायद .....तुम्हे .....
छोटापन ....ही....
है भाता ...
शब्द को तो करते ही रहे
याद ....पर .......
भूल गए ......
क्या ...
इसके अहसासात !
हां ,मानती हू ....
गल्ती ...
मेरी ही थी
तुम्हारे लिए तो.........फूल...
हां बनना तो चाहा
फूल ही
पर ......
तुम्हे तो भाता........
काटों का ही ........
साथ ..........................
शब्दों की ऐसी लड़ी बनाइ आपने.....बहुत अच्छा लगा...।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अहसासो को सजोया है आपने
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशब्द छोटा लेकिन शब्द का मर्म बहुत बड़ा होता है ...आपकी कविता में यह बात पूरी तरह से झलकती है ...आपका शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
जवाब देंहटाएंछोटे शब्दों की कड़ी जुड़ के कविता बन गयी...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसादर
किसी को काटों का साथ अच्छा लगे तो उसमें पुष्प का क्या कसूर।
जवाब देंहटाएंsunder kari bani hai
जवाब देंहटाएंआभार ......
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से लिखा है ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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