बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

........... "रक्त -रंजित युवा "........

रक्त-रंजित  युवा 
ये किसका लहू ,
बह रहा चंहु और है 
किसी का सिर ,
तो किसी के पांव हैं 
ये किसने थाम रखी,
एक दूजे की बांह है 
ये किसके घर  के चिराग  
ये किसके सिर की छांव हैं 
पास जा के देख तो लो ,
ये हमारे ही नौनिहाल हैं 
कितने बहानों से निकाला ,
माँ के आंचल की छांव से 
कभी साक्षात्कार तो कभी व्यापार 
हर कदम पर ठोकर  ,
हर निगाह में धोखा 
फिर भी पाता , सबसे धिक्कार है 
लहू में थरथराता ,ये राष्ट्र का अभिमान है 
अवसरवादियों ,इन्हें अवसर दे के तो देखो 
ये हमारी ही संतान हैं ,ये हमारी ही संतान हैं .......... 

7 टिप्‍पणियां:

  1. युवा शक्ति की अंतर्मन को पहचानने और समझने की आज बहुत आवश्यकता है.
    सार्थक आह्वान !

    सादर

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  2. बहुत खुब....बेहद सुंदर रचना।युवा शक्ति ही राष्ट्र का भविष्य है........जो हम है।सही लिखा आपने

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  3. साथ रहें तो विकास, नहीं तो विनाश।

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  4. अवसरवादियों ,इन्हें अवसर दे के तो देखो
    ये हमारी ही संतान हैं ,ये हमारी ही संतान हैं .....

    विचारोत्तेजक रचना के लिए साधुवाद!

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  5. ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए ना की प्रयोग.....अनसुने और बिना इस्तेमाल हुए ऊर्जा से हुआ विनाश...

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