रविवार, 13 फ़रवरी 2011

"प्रेम दिवस" की पूर्व संध्या पर .....

क्या बांटा जा सकता है ,
प्रेम कुछ दिवसों में ,
क्या कह सकते हैं ,
आज प्रेम करेंगे ,
क्यों कि आज है 
दिन प्रेम का !
ये तो होगा ......
प्यारे से प्रेम का 
शव -विच्छेदन !
चलो  थोड़ा तुम सोचो 
कुछ मैं भी सोचूं ,
प्रेम तो है 
इक अविरल धारा सा, 
सतत रहता ......
इस जीवन में भी , 
इस जीवन के पार भी कहीं ...
जीवन के मध्यकाल में ,
मध्यम मार्ग अपनाते हैं 
आज के दिन 
अपने लिए थोड़ा ज्यादा
वक़्त चुरा लें ..
खुद को  ही नहीं ,
नफ़रतगरो को भी 
थोड़ा दुलरा लें 
शायद प्रेम दिवस पर 
नफ़रत औ हिंसा हार जाए 
स्नेह की फुहारों से .....
ऐसे भी प्रेम दिवस मना लें ......

9 टिप्‍पणियां:

  1. एक दिन प्रेम के नाम क्यों...ये तो पश्चिम के चोंचले हैं card बेचने के और व्यापार करने के...इन चक्करों में मत पड़ो...
    दिखावों पे ना जाओ अपनी अकाल लगाओ.
    प्रेम तो हमेशा करना चाहिए....कम से पूरे के पूरे फागुन तो प्रेम करो....

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  2. जो बटा, उसमें प्रेम का गुण नहीं, अनवरतता का।

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  3. ठीक कहा आपने प्रेम के लिए एक दिन र्पयाप्त नही
    अच्छी कविता

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  4. बिलकुल सही कहा आपने प्रेम को किसी एक दिन में नहीं बांटा जा सकता.

    सादर

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  5. ठीक कहा आपने प्रेम के लिए एक दिन र्पयाप्त नही
    अच्छी कविता

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  6. pyar karne walo ke lie to sab din pyar ke hote hain
    haan ye hai k is dn apne pyar ke lie kuchh khas karne ka moka mil jata hai...
    happy valentine's day

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