बच्चा जब बोलना शुरू करता है तो सबसे पहले माँ ही बोलता है | प्रकृति ऐसा इसलिए कराती है क्योंकि उसके स्पंदन का आभास सबसे पहले माँ को ही होता है | माँ और उसके बच्चे की दुनिया एकदम सिर्फ उनकी अपनी ही होती है |उस दुनिया में दूसरा कोई भी अवांछित होता है ,कभी -कभी उस बच्चे का पिता भी | माँ -बच्चे की उस दुनिया के अपने ही नियम -कायदे होते हैं |उनका एक अलिखित संविधान होता है ,जिसमें संशोधन के अधिकारी भी वही होते हैं |बच्चे की सुविधानुसार -उसकी दिनचर्या के आधार पर ही इसमें नयी धाराएं जुड़ जाती हैं |
इस सबमें दिक्कत तब आती है, जब पिता सोचता है कि वो क्रमश :
उनसे दूर होता जा रहा है | वस्तुत : पिता जब अपने कार्यस्थल में व्यस्त
रहता है तब माँ पिता का दायित्व भी निभाती है और बच्चे के समीपतर
होती जाती है |इस रिश्ते का सबसे खूबसूरत रूप तब देखने को मिलता है जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और माँ की ढाल बन जाते हैं |जो भी उनकी माँ को कुछ बोल दे ,वो उनकी निगाह में चुभने लगता है और कभी -कभी तो वो पूछ भी लेते हैं कि वो शख्स उनके घर आता ही क्यों है !
बच्चे की उगंली थामी हुई माँ को पता ही नहीं चलता है ,कब बच्चे ने उस की उगंली थाम ली और उसके अभिभावक के रूप में आ गया है | ये पल एक माँ को कितना आश्वस्त करते हैं ये एक माँ ही समझ सकती है या
जो मन से अभी भी बच्चा हो |
बच्चों के बड़े होने पर माँ एक शून्य सा महसूस करती है | बच्चों के पीछे सुबह से शाम तक भागती हुई माँ उनके बड़े होते ही एकदम थम गयी
सी महसूस करती है जैसे तेज भागती गाडी में अचानक ब्रेक लग गयी हो |
शिथिल पड़ी माँ तब एकदम चैतन्य हो जाती है जैसे ही बच्चे का फोन आता है और माँ के पहले ही बच्चा पूछ लेता है -तुमने खाना खाया ? क्या कर रही हो ? किसी आंटी के पास चली जाओ या उन को बुला लो |आवाज़ ऐसी क्यों हो रही है ?.........सच उस पल धरती पर स्वर्ग उतर आता है और बच्चे की
सूरत में भगवान के दर्शन हो जाते हैं ....
इसलिए इस दुनिया के सभी पितृ - वर्ग से मेरी दरख्वास्त है --कृपया ये शिकायत कभी भी ना करें कि बच्चों के बड़े होने पर उनकी माँ को कोई भी कुछ नहीं कह सकता ,क्योकि ये रिश्ता ही कुछ ऐसा है ........
इस सबमें दिक्कत तब आती है, जब पिता सोचता है कि वो क्रमश :
उनसे दूर होता जा रहा है | वस्तुत : पिता जब अपने कार्यस्थल में व्यस्त
रहता है तब माँ पिता का दायित्व भी निभाती है और बच्चे के समीपतर
होती जाती है |इस रिश्ते का सबसे खूबसूरत रूप तब देखने को मिलता है जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और माँ की ढाल बन जाते हैं |जो भी उनकी माँ को कुछ बोल दे ,वो उनकी निगाह में चुभने लगता है और कभी -कभी तो वो पूछ भी लेते हैं कि वो शख्स उनके घर आता ही क्यों है !
बच्चे की उगंली थामी हुई माँ को पता ही नहीं चलता है ,कब बच्चे ने उस की उगंली थाम ली और उसके अभिभावक के रूप में आ गया है | ये पल एक माँ को कितना आश्वस्त करते हैं ये एक माँ ही समझ सकती है या
जो मन से अभी भी बच्चा हो |
बच्चों के बड़े होने पर माँ एक शून्य सा महसूस करती है | बच्चों के पीछे सुबह से शाम तक भागती हुई माँ उनके बड़े होते ही एकदम थम गयी
सी महसूस करती है जैसे तेज भागती गाडी में अचानक ब्रेक लग गयी हो |
शिथिल पड़ी माँ तब एकदम चैतन्य हो जाती है जैसे ही बच्चे का फोन आता है और माँ के पहले ही बच्चा पूछ लेता है -तुमने खाना खाया ? क्या कर रही हो ? किसी आंटी के पास चली जाओ या उन को बुला लो |आवाज़ ऐसी क्यों हो रही है ?.........सच उस पल धरती पर स्वर्ग उतर आता है और बच्चे की
सूरत में भगवान के दर्शन हो जाते हैं ....
इसलिए इस दुनिया के सभी पितृ - वर्ग से मेरी दरख्वास्त है --कृपया ये शिकायत कभी भी ना करें कि बच्चों के बड़े होने पर उनकी माँ को कोई भी कुछ नहीं कह सकता ,क्योकि ये रिश्ता ही कुछ ऐसा है ........
बहुत ही विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है आपने.माता और बच्चों का रिश्ता बहुत ही अनमोल होता है.
जवाब देंहटाएंसादर
और माँ के मामा बोलता है //
जवाब देंहटाएंसुंदर निवेदिताजी
विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंमाफ़ी चाहता हूँ
विचारशील लेख।
जवाब देंहटाएंmaa aur bacche ka riste ko bahut hi sunder ,,,shandar prastuti
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंविचारणीय लेख प्रस्तुत किया है
विचारणीय आलेख्।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।