अंकुरित होते
पल्लवित होते
सांस-सांस श्वांस भरते
एक-एक कर
यूँ डग भरते
कब कहाँसे
बढ़ चली ज़िन्दगी............
सोचा क्या-क्या
क्या-क्या अरमान सजाये
वर्षों का सोच-सोच
परत दर परत तह लगाए
पता नहीं कैसे
हाथ छुडा चली ज़िन्दगी ...........
आसमान को छूने की
हसरत लिए ,पंखों ने इक
आस भरी परवाज़ भरी ,
ना जाने कहाँ से सूरज सा चमक
पंख जला गयी ज़िंदगी ...........
-निवेदिता
आसमान को छूने की
जवाब देंहटाएंहसरत लिए ,पंखों ने इक
आस भरी परवाज़ भरी ,
ना जाने कहाँ से सूरज सा चमक
पंख जला गयी ज़िंदगी ...........
वाह!बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं ये.
सादर
चलिए स्वर्ण तप कर ही निखरता है .....
जवाब देंहटाएंइस भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
नई सुबह फिर आएगी..बहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंआसमान को छूने की
जवाब देंहटाएंहसरत लिए ,पंखों ने इक
आस भरी परवाज़ भरी ,
ना जाने कहाँ से सूरज सा चमक
पंख जला गयी ज़िंदगी .... bahut hi gahre ehsaas
एक भावपूर्ण कविता. ..... आभार!
जवाब देंहटाएंओह! बहुत ही भावुक-सी जिंदगी की दास्ताँ सुनाती कविता है ये तो....
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी को हल पर एक परीक्षा से गुज़रना पड़ता है।
जवाब देंहटाएंनयी सुबह फिर आयेगी , उम्मीदों भरी सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसोचा क्या-क्या
जवाब देंहटाएंक्या-क्या अरमान सजाये
वर्षों का सोच-सोच
परत दर परत तह लगाए
बहुत सुन्दर रचना
कभी हमारे ब्लॉग पर भी आगमन करे
vikasgarg23.blogspot.com
जिंदगी की तमाम घटनाओं की प्रस्तुति ,बधाई
जवाब देंहटाएंभुत भाव पूर्ण रचना बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
जिन्दगी कहती रही,
जवाब देंहटाएंथपेड़े सहती रही।
गहन शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंjal kar hi jindagee jeene ka pata chalta hai..:)
जवाब देंहटाएंआसमान को छूने की
जवाब देंहटाएंहसरत लिए ,पंखों ने इक
आस भरी परवाज़ भरी ,
ना जाने कहाँ से सूरज सा चमक
पंख जला गयी ज़िंदगी ...........
aashaon ke tinke chun chun kar sapno ka mahal banaya tha, tufaan se tinke bikhar gaye.....
aisa hi kuch bhav liye behtareen rachna....
न जाने क्या क्या रंग दिखाए जिंदगी !
जवाब देंहटाएंउर के गहन भावों की सुन्दर प्रस्तुति ........
जवाब देंहटाएंजिंदगी की विद्रूपताओं का भावपूर्ण चित्रण....
निवेदिता जी सुन्दर कृति -पर मन में पंख लगे रहना चाहिए -उडान न रुके
जवाब देंहटाएंआसमान को छूने की
हसरत लिए ,पंखों ने इक
आस भरी परवाज़ भरी ,
ना जाने कहाँ से सूरज सा चमक
पंख जला गयी ज़िंदगी
जिंदगी हर बार कुछ न कुछ नया कर जाती है ... लाजवाब रचना है ...
जवाब देंहटाएंआसमान को छूने की
जवाब देंहटाएंहसरत लिए ,पंखों ने इक
आस भरी परवाज़ भरी ,
ना जाने कहाँ से सूरज सा चमक
पंख जला गयी ज़िंदगी ........
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..ज़िंदगी जाने कितने खेल दिखाती है..
जलते हुए पंखों का सम्मान यहाँ कौन करे ...
जवाब देंहटाएंसमय नहीं है ...
शुभकामनायें आपको !
किधर से शुरू करून, किधर से ख़तम करून |
जवाब देंहटाएंजिन्दगी का फ़साना, कैसे तेरी नज़र करून |
है ख्याल जिन्दगी का, कैसे मुनव्वर करून |
मगरिब के जानिब खड़ा, कैसे तसव्वुर करून |