दिये की लौ ,
हवा के थपेड़ों से ,
प्रकम्पित होती ,
कैसी चमकती ,
अंधेरी राहें बस यूं ही ,
रौशन कर जाती .......
पर कभी जा कर ,
देख तो लो बाती को !
दिया तो फिर एक ,
नयी बाती ले कर ,
हर दिन चमकेगा ,
पर जो जल-जल कर ,
दिये को रौशन कर गयी ,
क्या उस बाती को ........
भूले से भी कभी - कहीं ,
यादों में ला पायेगा !
क्या कभी समझ पायेगा ,
रौशनी तो बाती से ही थी ,
दिया तो सिर्फ नाम था ........
-निवेदिता
रौशनी तो बाती से ही थी ,
जवाब देंहटाएंदिया तो सिर्फ नाम था ...waah! kya likha hai pane..apne ehsaaso ko shabdo me utar diya apne... very nice...
उत्कृष्ट कविता बधाई और शुभकामनाएं |थोड़ी व्यस्तता है देर से आने के लिये क्षमा कीजियेगा |
जवाब देंहटाएंरोशनी बाती की ही होती है, श्रेय दिये को मिलता है।
जवाब देंहटाएं"तन का दीया प्राण की बाती , दीपक जलता रहा रात भर " जीवन दर्शन में दीया बिना बाती के निष्प्राण है .
जवाब देंहटाएंरौशनी तो बाती से ही थी ... ise samajhna hi to aasaan nahi hota
जवाब देंहटाएंरोशनी तो बाती से ही होती है।
जवाब देंहटाएं...बहुत खूब।
very nice
जवाब देंहटाएंu re right
baato se hi jindagi roshan hoti h aur baatein hi andhera kar deti h
रोशनी तो बाती से ही होती है।
जवाब देंहटाएं...बहुत खूब।
बिलकुल नयी सोच
Intense feelings and message behind this beautifully written poem.
जवाब देंहटाएंNice read !!!!
बाती के मन कि व्यथा को अपने शब्दों में ढालने का खूबसूरत प्रयास ...
जवाब देंहटाएंपर दीये और बाती का साथ तो जन्मो का है ...दोनों पूरक है एक दूसरे के
दीया बाती बिन सुना है ..और बाती दीये के बिना जल भी नहीं सकती
--
सच है बाति भी नीव की तरह होती है खुद जलती है नाम दिए का करती है ....
जवाब देंहटाएंक्या कभी समझ पायेगा ,
जवाब देंहटाएंरौशनी तो बाती से ही थी ,
दिया तो सिर्फ नाम था ......
गहन अभिव्यक्ति ... बाती की बात कोई नहीं करता ..बाती की तरह ही नारी का जीवन है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
मित्रों आपके स्नेह के लिये आभारी हूँ .....
जवाब देंहटाएं@अनु ,बाती तो बिन दिये के भी जल जायेगी चाहे कहीं भी रख दो ,पर दिया बिन बाती के रौशन नहीं होगा ..... धन्यवाद !
क्या कभी समझ पायेगा ,
जवाब देंहटाएंरौशनी तो बाती से ही थी ,
दिया तो सिर्फ नाम था
बेहद विचारणीय सोच और गहन अभिव्यक्ति, गंभीर आवरण लिए आपकी रचनाये बेहद संवेदना छिपाए होती है बधाई
क्या कभी समझ पायेगा ,
जवाब देंहटाएंरौशनी तो बाती से ही थी ,
दिया तो सिर्फ नाम था ......
बहुत ही सुंदर,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ये सच है....लेकिन अधूरा ही है.......................ये दास्ताँ-ए-मोहब्बत है दिए और बाती की.....जो प्यार में एक दूसरे को जलाते हैं..तड़पाते हैं.....फिर आने वाले वियोग की आग में जलते हैं...धधकते हैं.....और जब ये आग बुझती है.......तो केवल और केवल राख़ बचती है...............हाँ हर बाती जल कर मुक्त हो जाती है......लेकिन दिया तो बेचारा रोज़-ब-रोज़ इस विरह की आग में जलता है....अपनी प्रेयसी को राख़ में तब्दील होते देखता है....और जब यह पीड़ा असहनीय हो जाती है तो टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है.....
जवाब देंहटाएंरौशनी तो बाती से ही थी ,
जवाब देंहटाएंदिया तो सिर्फ नाम था ........
Bemisal Panktiyan....
स्पष्ट सन्देश देती उम्दा रचना। स्वयं को जलाकर रौशनी देने वाली बाती ही अहम् है।
जवाब देंहटाएंदिया तो बाती से ही है---- गहरे भाव लिये सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंक्या कहूं, बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति सन्देश देती उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंदिया तो सिर्फ नाम था ....... bahoot khoobsurat... !!
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