बुधवार, 15 जून 2011

मन और मानस ........


मेरा मन और मानस ,
दोनों ही थे श्रांत-क्लांत ,
उलझनों को सुलझाते ,
खुद ही उलझते  जाते ,
मिला न कोई ओर-छोर,
ये जीवन है क्या .........
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म ,
ये दोनों ही मकड़जाल से 
जकडे रहते हर तंतु को ,
हम भटक कर हार से जाते ,
वेद-उपनिषद-गीता-रामायण
जितने भी हैं धर्म ग्रन्थ सब ,
बस एक नाम ही  रह गए ,
साधु-सन्यासी या मौलवी 
पिलाते रहे वही उपदेश का 
बासी लगता सा प्याला ,
थक-हार कर सोचा ,ऐसा 
कुछ अलग सा कोई ,
और क्या बतलायेगा .........
अपना समाधान तो हम ,
खुद से भी पा सकते हैं ,
बस जरा सा अपने ,
अंतर्मन में ही तो झांकना है ....
मन मेरा ,निगाहें मेरी ,
उलझन भी तो ये मेरी !
अब नई उलझन आ खडी  - 
ये अंतर्मन .............
इस बला को कहाँ से पाऊँ .................
                                        -निवेदिता 
   

21 टिप्‍पणियां:

  1. अपना समाधान तो हम ,
    खुद से भी पा सकते हैं ,
    बस जरा सा अपने ,
    अंतर्मन में ही तो झांकना है ....

    एक दम सही बात कही आपने.

    सादर

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  2. अपना समाधान तो हम ,
    खुद से भी पा सकते हैं ,
    बस जरा सा अपने ,
    अंतर्मन में ही तो झांकना है ....
    .... bilkul, bahut sahi kaha

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  3. बहुत ज़बरदस्त प्रश्न है।

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  4. अपना समाधान तो हम ,
    खुद से भी पा सकते हैं ,
    बस जरा सा अपने ,
    अंतर्मन में ही तो झांकना है ..

    बहुत सही समाधान...लेकिन अंतर्मन को कहाँ ढूंढा जाय, यह निश्चय ही यक्ष प्रश्न है..बहुत सुन्दर रचना..

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  5. पुनर्जन्म और पूर्वजन्म ,
    ये दोनों ही मकड़जाल से
    जकडे रहते हर तंतु को ,
    हम भटक कर हार से जाते ,

    बहुत सुन्दर

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  6. यही समझते समझते जीवन निकल जाता है।

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  7. ये जीवन है क्या .........bhut hi gahre shabdo se jivan ko abhivakt kiya hai apne.... very nice

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  8. अंतर्मन में ही तो कहाँ झांक पाते हम लोग, निवेदिता जी. काश ! झांक पाते. कबीर ने भी कितने सुन्दर शब्दों में बयां किया है; " काहे रे नलिनी तू कुम्हलानी, तेरे ही नाल सरोवर पानी .........."

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  9. उलझनों को सुलझाते मन का खुद ही उलझ जाना सच है ऐसा होजाता है अक्सर। पुनर्जन्म मकडजाल जैसा ही तो है अब गीता में कहा है तो मानना पडता है कभी कभी कोई चैनल भी दिखा देते है अपनी टीआरपी बढाने। सच है प्रवचन सुनने से कुछ नहीं होगा हमारा समाधान तो हमसे ही मिलेगा यही तो ओशो कहते थे। अन्तर्मन में झांकना कोई सहज नहीं है वैसे सहज योग ये बृहमा कुमारी वाले सिखाते है और अन्दर झांकना महेश योगी भी सिखाते है।
    इतनी कम आयु में इतना अथाह ज्ञान आपको कैसे प्राप्त हुआ । आश्चर्य

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  10. और क्या बतलायेगा .........
    अपना समाधान तो हम ,
    खुद से भी पा सकते हैं ,
    बस जरा सा अपने ,
    अंतर्मन में ही तो झांकना है ...

    यही काम तो सबके वश में नहीं .. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. अंतर्मन पर नियंत्रण ही सबसे अहम् है और सबसे कठिन भी ।

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  12. "तोरा मन दर्पण कहलाये " अंतर्मन में झांकिए उत्तर मिल जायेगा .

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  13. बहुत सुंदर प्रश्न और जहाँ तक मुझे समझ में आया है 'ध्यान' में ही हम अंतरमन तक पहुँच सकते हैं और ध्यान किसी सदगुरु से ही सीखा जा सकता है...

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  14. अंतर्मन में ही तो झांकना है ....
    मन मेरा ,निगाहें मेरी ,
    उलझन भी तो ये मेरी !
    अब नई उलझन आ खडी -
    ये अंतर्मन .............
    इस बला को कहाँ से पाऊँ .................

    बहुत सुन्दर रचना...बधाई निवेदिता जी!

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  15. इसी अंतर्मन की तलाश में हम ताउम्र भटकते रह जाते हैं...

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  16. अपना समाधान तो हम ,
    खुद से भी पा सकते हैं ,
    बस जरा सा अपने ,
    अंतर्मन में ही तो झांकना है ....

    Its a never ending process, rather its a everyday job. Isn't it ??

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  17. agar vakai mai koi insaan apne antarman ko samajh le to zindagi ki har samasya ka samadhan khud-b-khud ho jayega.

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  18. अंतर्मन में झांकना ज़रूरी है मगर कोई झांकता नहीं.यही विडम्बना है.

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