शुक्रवार, 17 जून 2011

मुग्ध मन - प्राण


सुबह ने किरणें बिखराई  ,
महकती शाम निखर गयी 
रात जो लरजती सरकी ,
दिन ने थामी सुरीली कमान 
बस यूँ ही सोचते-सोचते ,
उम्र मेरी तमाम गयी ........
तलाशती रही अपनों को ,
जिनकी मुस्कराहट मेरी ,
साँसों को ऊर्जावान कर गयी !
अचानक लगी ठोकर ने ,
थामा थिरकते कदमों को ,
एक खुशबू ने उमगते  पूछा ,
कभी उन को देख भी थम जाओ ,
जिनके चेहरे पर खिलती स्मित ,
देख तुम्हारा मुग्ध मन-प्राण ........
                                          -निवेदिता 

22 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा…………कोमल भावो की सुन्दर रचना।

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  2. तलाशती रही अपनों को ,
    जिनकी मुस्कराहट मेरी ,
    साँसों को ऊर्जावान कर गयी !...yah talaash bani rahti hai

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  3. simply beautiful..
    pearl like words and awesome expressions !!!

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  5. बहुत ही प्यारी कविता.

    सादर

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  6. बहुत कोमल भावों से भरी अच्छी रचना

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  7. तलाशती रही अपनों को ,
    जिनकी मुस्कराहट मेरी ,
    साँसों को ऊर्जावान कर गयी !
    भावपूर्ण रचना , काश ! यह तलाश जल्दी पूरी हो !!

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  8. तलाशती रही अपनों को ,
    जिनकी मुस्कराहट मेरी
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.
    कभी हमारे ब्लॉग पर भी विजिट करे
    vikasgarg23.blogspot.com

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  9. सुन्दर पंक्तिया , अद्भुत बधाई

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  10. बस यूँ ही सोचते-सोचते ,
    उम्र मेरी तमाम गयी ....waah! bhut khubsurti panktiya...

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  11. एक खुशबू ने उमगते पूछा ,
    कभी उन को देख भी थम जाओ ,
    जिनके चेहरे पर खिलती स्मित ,
    देख तुम्हारा मुग्ध मन-प्राण ........
    भावनात्मक पोस्ट के लिए आभार.

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  12. भावनाओं का काव्य रूप
    बहुत ही आकर्षक बन पडा है
    अभिवादन.

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  13. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना... साधुवाद

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