कुछ विचार अथवा मान्यताएं चिर - पुरातन होते हुए भी चिर - नवीन ही
प्रतीत होती हैं | विश्वास और अंधविश्वास तर्क - कुतर्क दोनों ही के लिए सनातन सत्य है | नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को अन्धविश्वासी होने का तमगा देने के लिए सदैव ही तत्पर दिखाई पड़ती है | चलिए आज हम इस निरंतर
चलने वाली बहस को एकदम ही नहीं छेड़ेगे ,परन्तु इस विषय को छोड़ेंगे भी नहीं |
अगर एकदम तटस्थ हो कर मनन करें ,तो ये एक ही सिक्के के दो पहलू
ही प्रतीत होते हैं | जब हम विश्वास करते हैं ,उस वक़्त हम खुद को इतना अधिक संतुलित और शक्तिशाली समझते हैं , कि हम गर्व से ऐलान सा ही कर देते हैं कि किसी भी किस्म का अंधविश्वास हमको छू भी न सकेगा|
हमको पता भी नहीं चलता है कि कब हम विश्वास करते-करतेअन्धविश्वासी
हो जाते हैं | विश्वास का अर्थ है किसी की सत्ता को स्वीकार करना और जब
हम किसी को स्वीकार कर लेते हैं तब उस पर अविश्वास कर पाना असंभव
होता है |अब आप स्वयं ही सोच कर देखें इस स्वीकृति से ही अंधविश्वास की
अधिकार-परिधि के घेरे में हम खुद को घिरे हुए पाते हैं |
इस पूरे प्रकरण में सबसे हास्यास्पद स्थिति यही रहती है कि तथाकथित
विश्वास - अंधविश्वास को हम तर्कों की कसौटी पर नहीं कस सकते | इससे
छुटकारा पाने का इकलौता मार्ग है अविश्वास | परन्तु प्रश्न तो फिर वहीं रह
गया और जब किसी भी वस्तु अथवा विचार का अस्तित्व ही नहीं है हमारे लिए ,तब उस की विवेचना का कोई भी हल नहीं मिल सकता | अंधविश्वास,
विश्वास अथवा अविश्वास - इन सभी मन:स्थितियों को कोई भी नाम दे लें,
ये सब सिर्फ हमारा खुद अपने आप में आत्मबल बढाने का एक साधन मात्र
हैं | अगर कोई भी मान्यता हमारे परिवार ,समाज और स्वयं हमारे लिए भी
नकारात्मक नहीं है तब उसको कोई भी नाम दे लें क्या फ़र्क पड़ता है !
विश्वास - अंधविश्वास को हम तर्कों की कसौटी पर नहीं कस सकते | इससे
छुटकारा पाने का इकलौता मार्ग है अविश्वास | परन्तु प्रश्न तो फिर वहीं रह
गया और जब किसी भी वस्तु अथवा विचार का अस्तित्व ही नहीं है हमारे लिए ,तब उस की विवेचना का कोई भी हल नहीं मिल सकता | अंधविश्वास,
विश्वास अथवा अविश्वास - इन सभी मन:स्थितियों को कोई भी नाम दे लें,
ये सब सिर्फ हमारा खुद अपने आप में आत्मबल बढाने का एक साधन मात्र
हैं | अगर कोई भी मान्यता हमारे परिवार ,समाज और स्वयं हमारे लिए भी
नकारात्मक नहीं है तब उसको कोई भी नाम दे लें क्या फ़र्क पड़ता है !
very true..
जवाब देंहटाएंNice read.
Regards
Jyoti Mishra
बहुत सही बात कही है आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
अगर कोई भी मान्यता हमारे परिवार ,समाज और स्वयं हमारे लिए भी
जवाब देंहटाएंनकारात्मक नहीं है तब उसको कोई भी नाम दे लें क्या फ़र्क पड़ता है !
... bilkul sahi
यदि मान्यता अहित न करे तो स्वीकार न करने का हठ न किया जाये।
जवाब देंहटाएंbhut sundar
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha apne...
जवाब देंहटाएंयदि मान्यता अहित न करे तो स्वीकार न करने का हठ न किया जाये।
जवाब देंहटाएंप्रवीणजी के इन शब्दों को पूर्ण समर्थन है....... सार्थक विवेचन लिए पोस्ट
सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएं---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
सही कहा।
जवाब देंहटाएंसटीक लेख ..
जवाब देंहटाएं.....बहुत सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंsahi sahi bat kah di aapne .
जवाब देंहटाएंsatik lekh
badhai
rachana
बिल्कुल सहमत...
जवाब देंहटाएंसारथक चिंतन....
जवाब देंहटाएंसादर....
bahut hi sahi or acchi lekh hai...
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