ये कैसी विडम्बना है ,
ये कैसा उद्वेलन है .......
अपने प्रश्नों के ही घेरे में ,
क्षत-विक्षत अंतर्मन है !
कैसे परिचय दूँ ? नहीं-नहीं
ये कैसी आप्त पुकार है ,
क्या दूँ अपना परिचय !
तथाकथित अपनों से ,
गयी हमेशा छली .......
मैं एक नारी ,तारा ,
विवाह बाद कहलाई
बाली की पत्नी ........
बाली - सुग्रीव युद्ध में ,
सुग्रीव की विजय और
बाली के पराभव का फल ,
बना दी गयी सुग्रीव की वधु !
दो पुरुषों के जय-पराजय का
परिणाम भुगतने को ,
अभिशप्त क्यों है नारी ......
शायद ऐसे ही सरमा भी
तड़पी होगी जब ,
सुग्रीव हुआ पराजित और
विजय के चिन्ह सा बाली ने
किया उससे विवाह ........
सच मानवता भी कलंकित हुई
हमारे रिश्तों की भूलभुलैया में !
शायद मेरा परिचय सिर्फ इतना है ,
मैं हूँ अंगद की माँ.......
शायद नारीत्व सिर्फ माँ के रूप में ही ,
अनुशंसा पा सुरक्षित है ...........
अन्यथा तो नारी मात्र एक साधन है ,
गुमान या नफरत दिखाने का ,उसमें
ना तो दिल है ,ना ही दिमाग ,वो तो है
फकत एक नश्वर शरीर ............
-निवेदिता
शायद ऐसे ही सरमा भी
तड़पी होगी जब ,
सुग्रीव हुआ पराजित और
विजय के चिन्ह सा बाली ने
किया उससे विवाह ........
सच मानवता भी कलंकित हुई
हमारे रिश्तों की भूलभुलैया में !
शायद मेरा परिचय सिर्फ इतना है ,
मैं हूँ अंगद की माँ.......
शायद नारीत्व सिर्फ माँ के रूप में ही ,
अनुशंसा पा सुरक्षित है ...........
अन्यथा तो नारी मात्र एक साधन है ,
गुमान या नफरत दिखाने का ,उसमें
ना तो दिल है ,ना ही दिमाग ,वो तो है
फकत एक नश्वर शरीर ............
-निवेदिता
nari vidambna ka satik chitran
जवाब देंहटाएंप्रश्न अब भी अनुत्तरित है।
जवाब देंहटाएंprashna anuttarit nahin hai, tara ko sirph maan ke roop men jane jo usaka shashvat satya roop hai. patni to badal dete hain ya phir usaka darja kisi aur ko dekar patni bana lete hain lekin janani na kabhi badali ja sakti hai aur na hi usaka koi vikalp hai. isa liye nari ka parichay maan ke roop men shashvat hai.
जवाब देंहटाएंशायद ऐसे ही सरमा भी
जवाब देंहटाएंतड़पी होगी जब ,
सरमा का अर्थ समझ नहीं आया ...
तारा के माध्यम से नारी की भावनाओं का सटीक चित्रण किया है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति ..ऐसे प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं
नारी एक शक्ति है। बल है, संबल है।
जवाब देंहटाएंकविता के माध्यम से व्यक्त आपके आक्रोश द्वारा समाज की मनोवृत्ति दर्शाया गया है।
आप सभी विद्वमित्रों का आभार !
जवाब देंहटाएं@प्रवीण जी ,मेरे प्रश्न का उत्तर अन्तिम पंक्तियों में ही है ,जिसको रेखा जी की भी सहमति मिल गयी .....आने का धन्यवाद !
@संगीता दी ,सरमा सुग्रीव की पत्नी का नाम है .....सादर !
nari man ko sundarta se ukera hai aapne is post me
जवाब देंहटाएंनारी मन की को समझाने -समझाने में समर्थ
जवाब देंहटाएंतारा के माध्यम से नारी की विवशता का मार्मिक चित्रण ..
जवाब देंहटाएंगहन भावों के साथ ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंher pannon per sabki apni apni peeda hai... sahi shabd diye hain
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (25.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
नारी मन की अन्तर्व्यथा का सटीक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंसच मानवता भी कलंकित हुई
जवाब देंहटाएंहमारे रिश्तों की भूलभुलैया में !
........shayad yahi uttar hai.
Ek utkrisht aur marmik prastuti. Abhar!
निवेदिता ..शुक्रिया ... सुग्रीव की पत्नि का नाम ज्ञात नहीं था ..
जवाब देंहटाएंदी ,आपका स्नेह और आशीष मिल गया :)
जवाब देंहटाएंनारी का दर्द हर युग में काल में एक सामान ही रहा ... गहन पीड़ा को शब्द दिए आपने !
जवाब देंहटाएंविडम्बना है कि नारी को सम्पत्ति समझा गया
जवाब देंहटाएंbehtreen ********
जवाब देंहटाएंनारी को साधन बना दिया गया है सदियों से,कभी दूसरे बनाते हैं तो कभी वह स्वयं बनती है !
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव !
क्या कहूं कविता की शुरुआत ही बहुत बेहतर है। समझ में आ गया कि किस ओर जा रही है कविता। बहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंये कैसी विडम्बना है ,
ये कैसा उद्वेलन है .......
अपने प्रश्नों के ही घेरे में ,
क्षत-विक्षत अंतर्मन है !
बहुत ही सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएं....और बहुत ही गहरे भाव !
बहुत सुंदर रचना और इस रचना के माध्यम से जो प्रश्न उठाये है बेहद गंभीर है. गहरे भाव की सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंनारी तो मां, बहन, पत्नी के अलावा निवेदिता के नाम से भी जानी जाती है ना :)
जवाब देंहटाएंउद्वेलित होने को मजबूर करती प्रभावशाली प्रस्तुति - कुछ-कुछ विश्वास जग रहा है कि तस्वीर बदलेगी.
जवाब देंहटाएंहर युग ,हर काल में यही कथा-यही व्यथा ,न जाने कब तक दोहराई जाएगी ..?????????
जवाब देंहटाएंसटीक प्रश्न उठाती सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा और बढ़िया लिखा है |
जवाब देंहटाएंacchi rachna ..
जवाब देंहटाएंजरुरत है स्त्री-विमर्श में ऐसी प्रभावी सृजन का ,/ सार्थक गंभीर मनोभाव लिए चिंतन को आभार जी .. /
जवाब देंहटाएंवास्तव में नारी के पास दिल भी होता है और दिमाग भी, नश्वर शरीर तो सबका ही है फर्क़ इतना ही है कि पुरुष प्रधान समाज हमेशा नारी को दबाता रहा है और आज भी तथा अतीत में भी नारी अपने कुचले जाने के भाव को स्वीकार कर लिया है न जाने क्यों? शायद मजबूरी वश...नहीं यह मज़बूरी कैसी? तो स्वार्थ? या अकर्मण्यता? अथवा यह सब? जो भी हो आज की नारी जो अपने को बहुत आत्मबली मानती है उसके भी अन्दर कहीं न कहीं उसका डर सम्मान पाने की लालसा अथवा दिखावापन अथवा उसकी भीगवादी जीवन शैली ही उसके दमन का कारण है। नारी ने अपने को साधन मान लिया है इसी में वह अपना सुख तलाश रही है जो कि नहीं होना चाहिए। यह तो रहा मेरा उद्रार।
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना बहुत ही सुन्दर और विचारणीय है। बधाई
aaj bhi vahi chalan chala aa raha hai nari ke prati. bahut sashakt rachna. aabhar.
जवाब देंहटाएंनारी मन की ब्यथा को ... सार्थक प्रश्नों के माध्यम से अभिव्यक्ति दी है आपने इस भावपूर्ण रचना में ...बहुत सुन्दर रचना......
जवाब देंहटाएंनारी की यही व्यथा कथा है
जवाब देंहटाएंपौराणिक सन्दर्भों के उद्धरण से संदर्भों की एक पुनर्रचना हो जाती है !
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ..जो भूल बालि की थी वही सुग्रीव ने भी की ...मगर राम भक्त हो जाने के कारण सुग्रीव् क्षम्य हुए ..
हाँ नारी की नियति वही रही ....
इस प्रश्न का शायद कोई उत्तर है ही नहीं ...आज तो नारी मन के भावों का बहुत ही सुंदर शब्दों में सटीक चित्रण कर दिया आपने दी...
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