शब्द सारे नि:शब्द हैं ,
स्वर सभी खामोश हैं ,
भावनाएं अवाक हैं ,
आत्मा भी स्तब्ध है ,
ये कैसी आज़ादी ,
ये कैसा देशप्रेम है !
प्रशासन के विकृत ,
आतंक के सामने ,
निर्जीव हर तंत्र है ,
हमारा कसूर क्या ,
सिर्फ यही है कि ,
हम भारतीय हैं !
हमारे पार्श्व-रक्षक ,
ना तो अमरीका है ,
और ना ही पाक है ,
अपने ही घर में ,
दुत्कार दिए जाने को
विवश राष्ट्रभक्त हैं !
त्रासदी तो यही है ,
ये आतंकी ही हमारी ,
सता में नीति-निर्धारक हैं,
हमला चाहे मुम्बई में हो ,
या फिर संसद में ,
आरोपितों के स्वत:ही ,
प्रमाणित अपराधों पर ,
लम्बी बहसें होती है ,
जेल की कोठरी भी ,
फाइव स्टार होटल सा ,
सजाई जाती है ,
ऐसा दोगला व्यहार क्यों !
विचारों की भिन्नता ,के
विरोध का प्रकटीकरण ,
इतना वीभत्स क्यों ....
शायद यही हमारे ,
तथाकथित प्रजातंत्र के ,
अवसान की शुरुआत है !
सच ही आज नि:शब्द हो गए हैं और लग रहा है कि
जवाब देंहटाएंतथाकथित प्रजातंत्र के ,
अवसान की शुरुआत है !
मन कि भावनाओं को सटीक शब्द दिए हैं
सही कहा है आपने, यह प्रजातंत्र के अवसान की शुरुआत है।
जवाब देंहटाएंविचारों की भिन्नता ,के
जवाब देंहटाएंविरोध का प्रकटीकरण ,
इतना वीभत्स क्यों ....
शायद यही हमारे ,
तथाकथित प्रजातंत्र के ,
अवसान की शुरुआत है !
बहुत सुंदर लिखा है निवेदिता जी ..
एक एक शब्द ..सटीक ...दिल की गहराइयों में उतर गया है ..!!
यही तो रोंगटे खड़े कर देने वाली हमारी गति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भद्दा मज़ाक , बेहद प्रभावशाली रचना बधाई
जवाब देंहटाएंएक अच्छी परिभाषा ...खोज
जवाब देंहटाएंशब्द सारे नि:शब्द हैं..
जवाब देंहटाएंtitle in itself speaks a lot..
lovely work.
शब्द सारे नि:शब्द हैं ,
जवाब देंहटाएंस्वर सभी खामोश हैं... such me apne bhut hi gambhir prashn kiya hai... jawab ke liye shabd bacte hi nhi hai..
bahut hi sunder shabdo mein likha hai
जवाब देंहटाएंkhamosh shabdon ki zubaan
जवाब देंहटाएंacche sabdo ka prayog kiya hai aapne
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi aaye aane ke liye ye rahi link -"www.samrat bundelkhand.blogspot.com"
बहुत गहरी बात कह दी आपने।
जवाब देंहटाएं---------
मेरे ख़ुदा मुझे जीने का वो सलीक़ा दे...
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
यह काव्य प्रस्फुटन तो होना ही था -संवेदनाओं से जुडती उन्हें महसूस करती कविता !
जवाब देंहटाएंये राजनेताओं की वजह से है ... सबको एक साथ उतना होगा ... फिर से क्रांति की ज़रूरत है ...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
सच कहा,
जवाब देंहटाएंमन अशान्त है।
बिल्कुल सही कहा है आपने, पर हम सब अपना कर्तव्य निभायें, तभी बदलाव आयेगा,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bhut sahi likha hai apne nivadita ji
जवाब देंहटाएंvikasgarg23.blogspot.com
अपने घर में बेघर होने जैसी मन की व्यथा को शब्द दिए आपने ...
जवाब देंहटाएंbeautiful- मैं भी निः शब्द.
जवाब देंहटाएंutkrsht kavy ka darshan...
जवाब देंहटाएंabhibhut kar gaya . sadhuvad ji .
ये घटना स्तब्ध और निशब्द कर देने वाली ही है। हमारे देश में जहाँ संस्कारों की दुहाई दी जाती है , वहां सोयी हुयी निर्दोष जनता के साथ ऐसी बर्बरता? आँसू आ गए इस पतन को देखकर।
जवाब देंहटाएंकोई शब्द नहीं..कुछ कहने को नहीं...
जवाब देंहटाएंसद्भावनाओं का अच्छा प्रस्फुटन
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा....
जवाब देंहटाएंहम सभी स्तब्ध और निशब्द हो जाते हैं....
जवाब देंहटाएंशायद यही हमारे ,
जवाब देंहटाएंतथाकथित प्रजातंत्र के ,
अवसान की शुरुआत है !
सच में सभी स्ताब्ब्ध हैं...आपने हर दिल की आवाज़ को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं..आभार
आरोपितों के स्वत:ही ,
जवाब देंहटाएंप्रमाणित अपराधों पर ,
लम्बी बहसें होती है ,
जेल की कोठरी भी ,
फाइव स्टार होटल सा ,
....बहुत सुंदर लिखा है निवेदिता जी
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
गहरे उतर कर झिंझोड़ती हुई रचना ....
जवाब देंहटाएंbahut gahari kavita ..behtreen
जवाब देंहटाएंsanjida bat kahi aapane
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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