शनिवार, 4 जून 2011

सुनो ना ........

सुनो ना ,
आज इन हवाओं में ,
अजीब सी 
सरगोशियाँ हैं ,
मेरी कमियाँ 
बताते-बताते 
फेहरिस्त 
कुछ ज्यादा
बढ़ती गयी .......
पर ज़रा इनसे ,
पूछ कर देखो 
जब मैं ना हूँगी ,
तब.........
मुझमें तो नहीं,
क्यों कि मैं 
हूँगी ही नहीं 
पर क्या मेरी कमी 
कभी समझ पायेंगें .......
               -निवेदिता 

15 टिप्‍पणियां:

  1. गहन विचारों से ओतप्रोत बेहतरीन रचना

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  2. खुद को स्थापित करने की चाह .....
    फिर पूछना क्या ज़माने से ...!!

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  3. बहुत गहन अनुभूति.
    सुन्दर अभिव्यक्ति.
    शुभ कामनाएं.

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  4. बिल्कुल नहीं जी।
    भावुक कर गई रचना।

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  5. पर क्या मेरी कमी
    कभी समझ पायेंगें .....यह प्रश्न अक्सर मन में उठता है ..अच्छी प्रस्तुति

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  6. जब हम ही नहीं होंगे तो ....बहुत गहरी सोच

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  7. मुझमें तो नहीं,
    क्यों कि मैं
    हूँगी ही नहीं
    पर क्या मेरी कमी
    कभी समझ पायेंगें .......
    bahut sunder kavita
    padh kr man prasann huaa
    badhai
    rachana

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  8. तब.........
    मुझमें तो नहीं,
    क्यों कि मैं
    हूँगी ही नहीं
    पर क्या मेरी कमी
    कभी समझ पायेंगें .......
    दार्शनिक भाव को सामने लाती पंक्तियाँ ....आपका आभार

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  9. पर क्या मेरी कमी
    कभी समझ पायेंगें ....
    बहुत गूढ़ प्रश्न कर दिया आपने?

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  10. पर क्या मेरी कमी
    कभी समझ पायेंगें .......

    इस प्रश्न का उत्तर ही शेष प्रश्न में बदलता है .

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