कभी-कभी लगता है कि ये सामाजिकता मन को हद से ज्यादा थकाने वाली चीज़ है | इस को निभाना भी एक तरह से अनिवार्य होता है | जैसे कि किसी भी परिक्षा का पहला प्रश्न हो !करना आवश्यक है ,वरना नम्बर कट जायेंगे | ऐसी थकाऊ और पकाऊ चीज़ें प्रचलन में नहीं आनी चाहिए .......और अगर आ भी गयी हो तो इनको हटाने में देर नहीं करनी चाहिए |
अब आप सोच रहें होंगे कि ऐसा भी क्यों ..... चलिए हम कुछ मदद कर ही देतें हैं |
ज़रा सोचिये आप के किसी मित्र या पड़ोसी के घर पुत्री के जन्म की बधाई देने पहुँच गए और बड़े जोश के साथ बधाई के साथ मिठाई की मांग भी कर डाली | पर ये आपको चार सौ चालीस वोल्ट का झटका क्यों लग गया ! अरे भाई आपको जवाब में सिर्फ इतना ही तो सुनना पड़ा ,' मिठाई काहे की ये तो क़र्ज़ चढाने आ गयी ' | अब बताइये हो गयी न आपकी सामाजिकता की ऐसी तैसी |कहीं दूसरी या तीसरी पुत्री हुई हो ईश्वर ही आपको बचाए ........
छोडिये इसे ,पड़ोसी का बच्चा अच्छे नम्बर लाया है ,आप खुशी-खुशी अभिभावक को बधाई देते हैं कि बच्चे ने तो ख़ानदान का नाम रौशन कर दिया और उसको तोहफ़ा थमाते है |बच्चा भी बहुत खुश है ,
पर अचानक से बुजुर्गवार की आवाज़ आती है 'हाँ ये तो हो गया , अब देखो कहाँ जायेंगे ? थोड़े और नम्बर होते तब .....' अब इस तब का क्या करें ?
बच्चे थोड़े बड़े हो गए और आप बस यूँ ही पूछ बैठे उस की शादी के बारे में ,बस आ गयी आफत |दहेज़ ,बेरोजगारी , सामाजिक विभेद जैसी सारी समस्याओं पर सुन लीजिये |अगर आप ने ये सब सोच कर पूछा ही नहीं ,तब असामाजिक होने का तमगा देने में पल भर का भी विलम्ब न होगा |अब आप क्या करें इधर कूआँ उधर खाई .........
ये सब तो तब भी एक बार को झेल लीजिएगा |सबसे बीहड़ ( क्षमा कीजियेगा इस शब्द के लिए ) स्थिति तब आती है जब कहीं शोक प्रकट करने जाना हो |ये ऐसी परिस्थिति होती है जब आप क्या बोले ये समझ ही नहीं पाते हैं |आप सब खामोश बैठे हैं ,अचानक ही किसी ने कुछ पूछ लिया अब सामने वाला शुरू हो जाता है कि उसे तो पहले ही आभास हो गया था ,उसने कहा भी था और लगे हाथ गवाही भी दिला देंगे |ज़रा उनसे पूछो कि अगर पता था तो सुरक्षा के उपाय पहले ही क्यों नहीं कर लिए ! उसके बाद भी ढीठ की तरह अगर अंतिम यात्रा के बारे में पूछ लिया ,तो ऐसा वर्णन होगा जैसे किसी बरात का विवरण दे रहे हों |कहीं गलती से किसी महिला से पूछ लिया तो आपका मालिक ईश्वर है ! उनका कौन गया ये भूल कर ,फूलों की चादर ,मेवे लुटाना ,दान की सामग्री ,तमाम भोज ..... इन सबका ऐसा रोचक विवरण प्रस्तुत कर देंगी कि आप सोचने को मजबूर हो जायेंगे कि ये सारा वर्णन शोक का तो होगा नहीं |कहीं आपको मिली सूचना गलत तो नहीं ?इतना तो हम भी समझते हैं कि वो लोग भी उस दुःख से भागना चाहते हैं |पर इस तरह का व्यवहार क्या मृत्यु का अपमान या उपहास जैसा नहीं लगता !
अब आप ही बताइये ऐसी सामाजिकता किस काम की जो आपके मन पर बोझ को बढ़ा दे ...........
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ - दैनिक जीवन से जुडी घटनाओं की सीधी और सरल प्रस्तुति अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंसामाजिकता पर एक बेहद सुन्दर आलेख. दरअसल आज हर इन्सान इतनी आप धापी में रहता है कि कब उसे कहाँ होना चाहिए, कब क्या बोलना चाहिए वह नहीं जान पाता है वह तो बस एक मशीन की भांति काम करता है. दूसरा हम लोग हम घड़ी के गुलाम होकर रह गए हैं, हम किसी को एक मिनट समय नहीं देना चाहते. अतः समाज से इसी तरह के व्यवहार का सामना करना पड़ता है.
जवाब देंहटाएं......... आभार. अनेकानेक शुभकामनायें.
सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंऐसी सामाजिकता किस काम की जो आपके मन पर बोझ को बढ़ा दे ...........
विचारणीय लेख ... सामाजिकता निबाहना भी ज़रूरी होता है ..क्या करें ..कभी कभी स्तब्ध कर देने वाली स्थिति भी आ जाति है
जवाब देंहटाएंसामाजिकता में जब तक सहजता नहीं आयेगी, सम्बन्ध कृत्रिम बने रहेंगे।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंजिस घटना का आपने उल्लेख किया है ठीक वैसा ही मेरे साथ भी हुआ था आज से लगभग दो साल पहले जब एक सहयोगी की बिटिया होने पर मिठाई की मांग कर डाली थी वैसा ही जवाब मिला था जिसके बाद हमारी बोलचाल तक बंद हो गयी.
सामाजिकता अब सही मायने में एक ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं रह गयी है.
सादर
विचारणीय आलेख्…………आपका कहना सही है।
जवाब देंहटाएंab to apne ghar ka kamra hi bhala ...
जवाब देंहटाएंऐसी सामाजिकता किस काम की जो आपके मन पर बोझ को बढ़ा दे|
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। इन स्थितियों में बदलाव लाया जाना जरूरी है।
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रहस्यम आग...
ब्लॉग-मैन पाबला जी...
sahi kahaa hai aapne Nivedita ji ....
जवाब देंहटाएंhhmmm! very well said.........
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