राधा ....राधिका ...........
या फिर कृष्ण प्रिया ...
बोलो तो तुमको कैसे पुकारूँ
ऐसा कौन सा संबोधन दूँ तुमको
जो तुमको मन भावे .....
ये क्या सवाल पूछती हो ....क्यों ...
अरे जो तुम्हे भावे ,वही तो मेरे
श्याम साँवरे को रिझाये .....
अरिष्ट ग्राम की लाडली .....
गोकुल की मान .....
रायाण की सहधर्मिणी ......
मन मोहना की मन प्राण ......
तेरे तो नाम में ही कान्हा आ विराजे ...
'रा' ने दिया तुझे लाभ और
सखी 'धा' में समाया मोक्ष.......
जिस राधा का अर्थ ही है ...'मोक्ष लाभ'.....
बता तो कैसे न हो तेरे ह्रदय में
कान्हा का निवास ............
बता और गोपियों को क्यों न मिला ,
ये छलिया ..... और सबने तो .....
उसे पाना चाहा ....पर तूने तो .....
कृष्णमय होना चाहा ......
बता न बिना समर्पण के कहाँ मिले ....
आत्मा को प्राण .......
शरद पूर्णिमा की रात्रि सा निर्मल ,
सजता महारास औ खनकती झाँझर
कान्हा की वंशी से बरसते राधिका के
आत्मार्पित भाव ...... कभी झूले की
ऊँची जाती पींगों सा झूमते ..........
चंद सवाल ........ ये मोरपंखी रंगों सा
सजा-सँवरा सबको लागे कितना प्यारा ......
-निवेदिता
kavita padhte padhte mann radha ho chala aur krishn ... radha to hai hi krishnmay
जवाब देंहटाएंराधा कृष्णमय ...कविता ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअद्भुत अहसास कराती हुई रचना,
जवाब देंहटाएंआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
राधा कृष्ण ,'मोक्ष लाभ' कराती रचना
जवाब देंहटाएंसमर्पण का सुख ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
राधे राधे।
जवाब देंहटाएंसुंदर हमे भी क्रुष्ण प्रेम मे डुबा दिया आपने
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएं-----------
कल 06/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह ...बहुत ही बढि़या ...
जवाब देंहटाएंवाह्…………बहुत सुन्दर चिन्तन की परिणति है ये भाव्।
जवाब देंहटाएंशब्द और भाव संयोजन अद्भुत है आपकी रचना का...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
@ बता न बिना समर्पण के कहाँ मिले ....
जवाब देंहटाएंआत्मा को प्राण ...
पहली शर्त ही समर्पण है। रचना अच्छी लगी।