आज सोचती हूँ तुम्हे देव पुकारूँ
तो हे सूर्य देव तुम्हे कुछ बतलाऊँ ,
तुमसे निगाह नहीं मिला पाते हम ,
कभी कहते आँखों में चमक लगती ,
पर ये तो उस से भी बड़ा है सच ...
देव हमें जलाने से पहले
तुम ख़ुद भी झुलस जाते हो !
सांध्य काल तुम्हारी
कम होती प्रखरता ,
प्रफुल्लित करती मन ..........
पर अगले ही पल ,
घिरता अंधियारा
याद तुम्हारी लाता
चंदा को विदा करती ऊषा .......
अपनी लालिमा से
सजाती विस्तृत आकाश ,
तुम्हारे स्वागत में
अर्ध्य जल लिए खड़े हम
कभी सूर्यान्जली देते
कभी करते सूर्य नमस्कार
सराहते स्वीकारते तुमको .....
पर फिर वही ...........
तुम्हारी तीखी प्रखरता
विचलित कर जाती मन ....
-निवेदिता
पर अगले ही पल अचानक ...
आँखों में अंधियारा छा जाता,
सच में तुम बहुत जलाते हो .....पर ये तो उस से भी बड़ा है सच ...
देव हमें जलाने से पहले
तुम ख़ुद भी झुलस जाते हो !
सांध्य काल तुम्हारी
कम होती प्रखरता ,
प्रफुल्लित करती मन ..........
पर अगले ही पल ,
घिरता अंधियारा
याद तुम्हारी लाता
चंदा को विदा करती ऊषा .......
अपनी लालिमा से
सजाती विस्तृत आकाश ,
तुम्हारे स्वागत में
अर्ध्य जल लिए खड़े हम
कभी सूर्यान्जली देते
कभी करते सूर्य नमस्कार
सराहते स्वीकारते तुमको .....
पर फिर वही ...........
तुम्हारी तीखी प्रखरता
विचलित कर जाती मन ....
-निवेदिता
जीवन के दो पहलू ...
जवाब देंहटाएंएक सोच देती ..सुंदर रचना ...
प्रखरता विचलित कर जाती है, पर अन्ततः वही काम आती है।
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तीखी प्रखरता
जवाब देंहटाएंविचलित कर जाती मन
बहुत ही बढि़या ।
कभी सूर्यान्जली देते
जवाब देंहटाएंकभी करते सूर्य नमस्कार
सराहते स्वीकारते तुमको .....
पर फिर वही ...........
तुम्हारी तीखी प्रखरता
विचलित कर जाती मन ..
दोनों स्थितियों का अच्छा विश्लेषण ...अच्छी प्रस्तुति
सुन्दर गहन विश्लेषण ।
जवाब देंहटाएंसच में तुम बहुत जलाते हो .....
जवाब देंहटाएंपर ये तो उस से भी बड़ा है सच
देव हमें जलाने से पहले
तुम ख़ुद भी झुलस जाते हो !... aur yahi baat hamen khud ko mitaker kisi ko banane ki prerna deti hai ... jo jalan tum hamen dete ho wah hamare liye zaruri bhi hai, per iske liye tumko jalna hota hai
सच है की तेज सहना आसान नहीं ... पर उसके बिना जीना भी आसान नहीं ... विश्लेषण करती रचना ...
जवाब देंहटाएंbhut hi saskt rachna..
जवाब देंहटाएंdo virodhabhaso ko sashakt roop se darshati rachna
जवाब देंहटाएंसूरज का मानवीकरण कर कविता में आपने वह हर बात रख दी है जो शायद सरलता से कहना संभव न हो पाता.
जवाब देंहटाएंसार्थक व भावनात्मक पोस्ट के लिए आभार.
दो स्थितियों का अनुपम चित्रण.सूर्य को विषय-वस्तु बना कर लिखी गई भावाभिव्यक्ति अति-सुंदर. इसी सूर्य का परिचय पाने मेरी रचना "अरुण का परिचय "जरूर पढ़ें.
जवाब देंहटाएंsurya dev ko samarpit khoobsurat kavita
जवाब देंहटाएंBehad sunder bimb lekar rachi bemisal rachna
जवाब देंहटाएंअसूर्यस्पर्शी बनने में ही गनीमत है ,कुंती का हश्र भला कौन चाहेगा :)
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी आपकी पंक्तियों के लिए मैं यही कहना चाहुंगा कि
जवाब देंहटाएं"मैं हर सुबह भरता हूँ मांग क्षितिज की
और शाम को कर देता हूँ विधवा
क्योंकि अँधेरे में जकड़ी हुई दुनिया को
रौशन करने के लिए
मुझे दिन भर जलना पड़ता है."
शुभकामनाएँ
bahut hi gahan vishleshan.....badhiya...badhai itni sarthak rachna ke liye..
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