अकसर सोचती हूँ , मेहनतकश और सुविधाभोगी इन दोनों जीवन-शैलियों में मूल अंतर क्या है ?
ये अंतर सिर्फ शारीरिक श्रम और आरामतलबी से ही जुड़ा है या कुछ और भी है ! कभी - कभी लगता है
कि ये अंतर न होकर सिर्फ एक मानसिक विलासिता है |इस अंतर को दिखा कर हम अपनी श्रेष्ठता सिद्ध
करना चाहते हैं |
शारीरिक परिश्रम करने वाला व्यक्ति ,सिर्फ अपने काम को अंजाम देने में ही व्यस्त रहता है ,जिस
से वो अपनी मूलभूत जरूरतों को किसी प्रकार पूरा कर सके |इसके विपरीत सुविधाभोगी अपनी शरीर को
यथासम्भव विश्राम देते हुए , अपनी पूरी मानसिक शक्ति सिर्फ इस में ही लगाता है कि किस प्रकार अपने
धन को बचाते हुए , उनसे अधिकतम काम ले सके |
इस विकृत मनोवृत्ति का दुष्परिणाम भी हमको ही झेलना पड़ता है | हम जब भी अस्वस्थ होते हैं ,
इस विकृत मनोवृत्ति का दुष्परिणाम भी हमको ही झेलना पड़ता है | हम जब भी अस्वस्थ होते हैं ,
हमारा पूरा शरीर कभी भी अस्वस्थ नहीं होता ........ कभी हृदय रोग तो कभी किडनी की समस्या ...कभी
मस्तिष्क तो कभी स्नायु तंत्र प्रभावित होता है |कभी भी हमारा पूरा शरीर अस्वस्थ नहीं होता .... हमारा
कोई न कोई अंग बीमार पड़ता है ,जिसके लिए हम विभिन्न विशेषज्ञों को तलाशते हैं जो हमारे उस अंग
को फिर से काम लायक कर देते हैं |इसके विपरीत कभी भी अपने घरों में काम करने वालों की समस्या को
देखें और उनसे पूछें तब पता चलेगा कि वो किसी अंग विशेष में दिक्कत नहीं महसूस करते ,अपितु उनके
शरीर में दिक्कत है |वो पूरे शरीर का जीवन जीते हैं और हम जैसे सुविधाभोगी अपने शरीर को भी विभिन्न
अंगों की किश्तों में महसूस करते हैं !
वास्तविक रूप से महसूस किया जाए तो उन मेहनतकशों की जीवन-शैली हम सुविधाभोगियों से कहीं
अधिक अच्छी है |अगर एक दिन भी सहायक न आयें तो अपना ही काम अधिक लगता है | हम सिर्फ खुद को
बहलाते हैं कि ,अगर हम उन से काम न कराएं तब उन्हें पता चलेगा ...... जब कि सच्चाई तो इसके विपरीत
है ..... वो तो नया काम तलाश लेतें हैं और उनका जीवन सतत चलता रहता है ...जबकि हम फुटकर अंगों
के शरीर का दुष्परिणाम भुगतते हुए उनकी कमी महसूस करने लगते हैं .......चलिए कोशिश करते हैं कि कुछ
आदतें उनसे भी उधार लेकर अपने जीने का तरीका सुधार लें !
विचारणीय और उपयोगी आलेख्।
जवाब देंहटाएंदैनिक जीवन की छोटी छोटी बातों का जो प्रभाव हमारी जिंदगी पर पड़ता है.....उसे बखूबी समझाया है आपने....
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट...
आदर सहित
सच कहा, आदत इतनी बिगड़ गयी है कि सुधरने का नाम ही नहीं लेती है।
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya upyogi jaankari prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही आपने।
जवाब देंहटाएं------------
कल 29/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
mehnatkash ki khushi asli hoti hai ....
जवाब देंहटाएंमंथन करने योग्य आलेख , विचारणीय विषय बधाई
जवाब देंहटाएं.चलिए कोशिश करते हैं कि कुछ
जवाब देंहटाएंआदतें उनसे भी उधार लेकर अपने जीने का तरीका सुधार लें
very good
चलिए कोशिश करते हैं कि कुछ
जवाब देंहटाएंआदतें उनसे भी उधार लेकर अपने जीने का तरीका सुधार लें !
सुन्दर सार्थक पोस्ट.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
सुविधा के साथ जीना भी कोई जीना है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय बात कही आपने हम सबके आम जीवन से जुडी ....अंतिम पंक्तियाँ अनुकरणीय हैं....
जवाब देंहटाएंकोई भी मेहनतकश मेहनत करता ही सुविधाओं के लिए है...
जवाब देंहटाएंएक ग्रीक कहावत है. Life is the gift of nature, but beautiful living is the gift of wisdom. और हर किसी का सपना एक बेहतर जिंदगी जीना होता है. चाहे मेहनतकश हो या आरामतलब. हाँ, बुद्धि के आधार पर 'बेहतर जिंदगी' के मायने सबके लिए अलग-अलग होते है.
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर व सार्थक पोस्ट के लिए आभार.
sarthak post...
जवाब देंहटाएं"कोशिश करते हैं कि कुछ आदतें उनसे भी उधार लेकर अपने जीने का तरीका सुधार लें!"
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद...सार्थक आलेख के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
मेरे विचार से मेहनतकश की जीवन शैली अच्छी हो, जरूरी नहीं। उनके जीवन में श्रम है, पर सेहत सम्बन्धी अनेक कुटेव भी हैं।
जवाब देंहटाएंअगर च्वाइस मिले तो मैं मध्यम वर्ग का व्यक्ति ही पसन्द करूंगा बनना, जिसे अपने जीवन के आगे की योजना और जीवन में विश्वास हो।
श्रमिक वर्ग का महिमा मण्डन साम्यवादियों ने अपने अपने कुटिल दर्शन (और छुद्र स्वार्थ के लिये) किया है। और वह फैशन में आ गया है! :)