बुधवार, 20 जुलाई 2011

मर -मर के बहुत जी लिये .....

माँ दिन की चमक में 
उस रोशनी से तीखे 
नश्तर सरीखे शब्दों से 
घायल मेरी आत्मा 
तुम तक पहुँचने में 
रात की राह देखती है 
सहम जाती हूँ मैं भी 
जब पाती हूँ तुम्हे भी 
अनिश्चय के गलियारों में 
ज़रा सोचो न माँ .....
क्या तुम न होगी घायल 
जब मुझे कतरेंगे यूँ ही  
छोटे-छोटे टुकड़ों में.....
जब माँ मुझे फेंक देंगे 
किसी नाली या कूड़े में 
मेरे साथ में ,सपने तो माँ 
तुम्हारे भी फेंके जायेंगे ....
अभी जब मैं हूँ तुम में समाई 
तब कैसे समझती हो पराई 
एक बार बाहर आने तो दो 
मैं नहीं कहीं किसी से कम 
सबको ज़रा समझाने तो दो ...
बोलो न माँ ,अगर होती 
तुम्हारी माँ भी तुम जैसी 
तुम और तुम से आने वाली ये 
सभ्यता कहाँ से आने पाती ...
विज्ञान बना अभिशाप मुझ सी 
अजन्मी अनचाही बेटियों के लिए 
हमें तो पाना था तुम्हारा दुलार  
तुम्हारे कलेजे का संताप बन गए 
हमारी पीड़ा ना कभी समझे हैं
ये पिता चाचा मामा काका 
पर ज़रा उनसे पूछ तो लो 
न होंगी बेटियाँ तो कैसे ये 
पुरुष का पौरुष उनका मान
उनका जन्म कहाँ संभव होगा.....
अब हमें इतना तो समझो कि 
हम दिन में तुमसे बात कर सकें 
यूँ दहशत के साए में अनिश्चित सी 
ज़िन्दगी कैसे जी पायें .....
मर-मर के तो बहुत जी लिए 
अब तो ज़िंदा रहने के लिए जियें ....... 
                                   -निवेदिता 
  

20 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...बहुत सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  2. सुन्‍दर शब्‍द रचना ....बेटी को बचाना ही होगा

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  3. एक बार बाहर आने तो दो
    मैं नहीं कहीं किसी से कम
    सबको ज़रा समझाने तो दो....

    dil ke bhavon ko chhuti rachna.....
    bahut hi sundar....

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  4. रचना के माध्यम से सटीक बात ... बधाई

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  5. न होंगी बेटियाँ तो कैसे ये
    पुरुष का पौरुष उनका मान
    ज्वलन्त समस्या और उसके कुछ प्रश्नों को एक सशक्त स्वर में उठाया है आपने इस कविता के माध्यम से। एक अच्छी प्रस्तुति।

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  6. ज्वलंत समस्या है इसलिए

    "मर-मर के तो बहुत जी लिए
    अब तो ज़िंदा रहने के लिए जियें ..."

    नितांत आवश्यक है - आभार

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  7. बहुत सुन्दर लिखा है आप ने |
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
    http://vikasgarg23.blogspot.com/

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  8. गहरे भावार्थ लिए एक खूबसूरत और उत्कृष्ट कविता बधाई निवेदिता जी

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  9. ओह!
    बहुत हृदयस्पर्शी और मार्मिक प्रस्तुति है आपकी.
    दिल को कचोटती हुई
    गहन भावों की अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ..साथ ही मार्मिक ... बेटियों का रुदन मन को पिघला देता है

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  12. गहरे भावार्थ लिए एक खूबसूरत और उत्कृष्ट कविता के लिये बधाई

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