सोमवार, 3 जनवरी 2011

मृत्यु......जीवन का अंत या ..

             अकसर सोचती हूं मृत्यु जीवन का अंत है या नव जीवन का प्रारम्भ । जब भी किसी का या कहूं उसके शरीर का अंत देखती हूं तो यही सवाल सामने आ जाता है । मुझे ऐसा लगता है ,जब भी हम किसी की मृत्यु देखते हैं ,तो उसमें किसी अपने को ,जो हमसे बिछुड गया है को ही याद करते हैं । जब हम उस अपने को कहीं भी नहीं देख पाते हैं तो लगता है कि मृत्यु जीवन का अंत ही है ,परन्तु जब मन शान्त हो जाता है तो लगता है कि मृत्यु उस शख्सियत का कुछ भी नहीं कर पायी । वह तो अपने नये रूप में अपनी नयी यात्रा में कहीं हमारे आस पास ही है । इस पूरी प्रक्रिया में दिक्कत सिर्फ़ इतनी सी है कि हम उसको पहचान नहीं पाते  ।
              हमारी विडम्बना इन्सान होने के फ़लस्वरूप सिर्फ़ इतनी है कि हम अपने  मृत अपनों को बारम्बार मृत देखते हैं । कल मैंने भी यही पाप किया । यह शब्द "पाप "जरूर कुछ ज्यादा भारी लग रहा है परन्तु ये सच है । कल हमारे एक बुज़ुर्ग पडोसी की मृत्यु हो गयी थी । सामाजिकता के नाते ही मै वहां गयी थी , परन्तु वापस आने के बाद से ही मन अपने माता _पिता की मृत्यु,जिसको कई वर्ष बीत गये हैं ,की याद से बोझिल है और मैं फ़िर इस प्रश्न में उलझ गयी हूं ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा ही अजीब सा प्रश्न लगता हैलेकिन मृत्यु जीवन का अंत और आरम्भ दोनों ही है.
    क्या लिखूं समझ नहीं पा रहा हूँ क्योंकि मैंने मात्र 11 वर्ष की आयु में ही तीन बहुत ही अपनों को खो दिया था और आज भी वो सब जीवंत रूप में मेरे स्मृति पटल पर अंकित है.

    आप फेस बुक पर हैं; मैंने आज आपको ऐड करना चाहा था लेकिन शायद कोई एरर है.

    सादर

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  2. बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है | नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
    आशा

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  3. निवेदिता जी सबसे पहले तो मेरे ब्लाग पर टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया। किसी भी चीज का अंत एक नए शुरूआत को जन्म देती है। जिस तरह से अंधेरे के बाद उजाले का आगमन होता है उसी तरह मृत्यु के बाद भी कुछ न कुछ नया जरूर होता होगा। आशा है कि आप अपना आशीर्वाद ऐसे ही बनाए रखेगीं। आभार।

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  4. निवेदिता जी आपने जिस प्रश्न पर विचार किया है वो बहुत सीधा सा है लेकिन उत्तर उतना ही टिपिकल है ।
    जिस प्रकार ,
    जब हम गेँद को ऊपर उछालते हैँ तो वह परवलयाकार होते हुए अपने ऊँच शिखर ( Climax ) पर पहुँचकर कुछ क्षण के लिए वहाँ रूकती है उसके वाद वो नीचे की ओर गिरती है और गिरके जमीन से टकराके पुनः ऊपर उठती है अर्थात एक तरंग की भाँति वो अपने पथ पर गतिमान होती रहती है ।
    ठीक इसी प्रकार ये जीवन और मरण की क्रिया अनवरत् चलती रहती है ।

    अब मैँ कहना चाहूँगा कि जब हमारा जीवन अपने ऊँच शिखर बिन्दु ( Climax) पर पहुँचकर कुछ क्षण के लिए रूकता है तो उसे हम मृत्यु कह सकते है । जिसमेँ आत्मा दूसरे लोक मेँ विचरण करती है उसे हम नहीँ देख सकते है क्योँकि अब माध्यम चैँज हो चुका है ।
    निवेदिता जी मेरे ब्लोग पर आकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए शुक्रिया ।

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  5. यह खोज और जद्दोजहद हज़ारों वर्ष पुरानी है ....

    इस जीवन को और वर्तमान को जीना आ जाए यही बहुत है ! शुभकामनायें !

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  6. बेजोड़ प्रस्तुति /
    शानदार अभिव्यक्ति

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  7. आदरणीय निवेदिता जी
    नमस्कार !
    ......शानदार अभिव्यक्ति

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