मन वीणा के तार .....
एक नाम ,
बिन पहचान
एक रिश्ता ,
जाना पहचाना ...
या फिर
कई नाते ,
शायद मनभाते ....
कभी रीते ,
कभी मीठे
कभी सुलझे,
कभी उलझे
कभी एकरूप ,
कभी एकतार
कभी अपरूप ,
विच्छिन्न विचार
पर सदा हैं ....
अभिन्न मन तार ..
कहीं तो छू लेती हूँ
मन वीणा के तार
ले लेते पूर्ण आकार ....
-निवेदिता
bada pyara sa intro diya aapne...:)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ही अच्छी लगी यह कविता.
जवाब देंहटाएंसादर
कभी रीते ,
जवाब देंहटाएंकभी मीठे
कभी सुलझे,
कभी उलझे
कभी एकरूप ,
कभी एकतार ...waah
बहुत मधुर ओर अच्छी लगी आप की यह सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंकभी रीते ,
जवाब देंहटाएंकभी मीठे
कभी सुलझे,
कभी उलझे
कभी एकरूप ,
कभी एकतार .....
बस यही जीवन की उहापोह है.... सुंदर लिखा आपने
यही प्रश्न मन को किस जगह लाकर खड़ा कर देता है।
जवाब देंहटाएंbahut sundar shbd prayog ,man moh liyaa shbdon kee bansuri ne .
जवाब देंहटाएंaproop shbd kaa behtreen prayog .
veerubhai
कभी रीते ,
जवाब देंहटाएंकभी मीठे
कभी सुलझे,
कभी उलझे
कभी एकरूप ,
कभी एकतार ...
Awesome creation !
regards,
.
सुंदर सुंदर सुंदर सुंदर बहुत सुंदर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंkabhi hamare blog pe aayen..
जवाब देंहटाएंsunder rachna...
जवाब देंहटाएंbehatarin shabd sanyojan bhavnaon ko aatmsat karta hua shilp achha laga ji .sadhvad
जवाब देंहटाएंएक रिश्ता ,
जवाब देंहटाएंजाना पहचाना ...
या फिर
कई नाते ,
शायद मनभाते ....
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
चाँद शब्दों में बाँध दिए रिश्ते ....
जवाब देंहटाएंअनमोल रचना .....
man veena ka taar anokha,
जवाब देंहटाएंlekar aaya aapka yah Jharokha,
shabdon ki dekhi rangoli,
bhavon ki kheli hai holi,
man mera khush huya ise padhkar,
likhti rahiye Nivedita ji jamkar.
ye jeewan hai ...yahi hai jiwan ke rang roop...
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
आप सब मित्रों का बहुत-बहुत आभार ......
जवाब देंहटाएं@विजय जी-आप काव्यात्मक प्रतिक्रिया भी बेहद अच्छी लगी ,शुक्रिया !
@ वीरुभाई जी-मेरा यही कहना था कि शब्द कितने भी अपरूप हों वीणा अगर सधी हुई हो तो उन से भी मधुर गीत गवा ही लेती है ,आभार !@यशवन्त और सन्जय-शुभकामनायें !