आज मैंने देखी इंसानों की मंडी,
नर-नारी सजे बिकाऊ जिन्स सरीखे ,
और खरीदार घेरे थे हम सरीखे,
जांचते हुए किसमें कितना है दम ,
नकारते उनकी मजबूरियों को ,
न ! ये तो बिलकुल बेकार है ,
ये तो खुद ही नहीं चल पा रहा ,
क्या एक और को ले चलूँ
इसको चलाने को ........
महँगा है ये सौदा मै नहीं करता,
ज़रा कोई उनसे पूछे,जो उनमें
सामर्थ्य होती तो वो वहां क्यों होते ?
महँगा है ये सौदा मै नहीं करता,
ज़रा कोई उनसे पूछे,जो उनमें
सामर्थ्य होती तो वो वहां क्यों होते ?
तब तक पीछे से एक सहमी सी
कंपकंपाती आवाज़ कुछ यूं आयी-
"ऐ साहिब हमका लै चलो ,हे मलिकार ..."
उसका वाक्य पूरा भी होने न पाया
खरीदार ने उसे ये कह कर भगा दिया-
"ये तो और भी बेकार है दखते नहीं
साथ में इसके बाल-गोपाल हैं
हर थोड़ी देर में वो रोयेंगे और
ये उन्हें चुप कराने भागेगी ...........
कितनी मजदूरी बेकार जायेगी .........."
अफ़सोस हुआ मानवतारहित मनुष्य देखके
जब अपने बचपन में खुद रोते थे -
क्या माँ ने उन्हें दुलराया न था ?
अपने बच्चे की पुकार पर न बढ़ी उनकी बाँहे?
सच है मुझे न थी दुनियादारी की पहचान
भूल जाते मनुष्य और मानवता का ज्ञान !!!
-निवेदिता
जब अपने बचपन में खुद रोते थे -
क्या माँ ने उन्हें दुलराया न था ?
अपने बच्चे की पुकार पर न बढ़ी उनकी बाँहे?
सच है मुझे न थी दुनियादारी की पहचान
कीमत से तौलते दूसरे की बेबसी ..........
खरीदार बनते ही बदल जाती भावना
भूल जाते मनुष्य और मानवता का ज्ञान !!!
-निवेदिता
बहुत सही लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
अपने आप को ही अपने भावों में स्थापित कर लें, वही बहुत है जीवन में।
जवाब देंहटाएंaaj ka such ye hee hai.....
जवाब देंहटाएंवाह भई निवेदिता जी
जवाब देंहटाएंbalkul sahi baat yahi hai aajkal ki duniya muh se kuch kehti hai or karti kuch or hi hai
जवाब देंहटाएंsundar spch acchi racha .
सही लिखा. अच्छा लिखा है. बधाई
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग भी देखें
अब पढ़ें, महिलाओं ने पुरुषों के बारे में क्या कहा?
ये दुनिया सच ही मंडी है यहाँ हर कोई बिकता है ... और इंसान तो बिकता ही है और खरीदार भी है ...
जवाब देंहटाएंयथार्थ अभिव्यक्ति.आप सब को नवसंवत्सर तथा नवरात्रि पर्व की मंगल्कानाएं.
जवाब देंहटाएंअब भी सब कुछ वैसा ही ....इस मंडी में कोई बदलाव नहीं ....
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