आज नवरात्रि के पावन पर्व पर जगत माता जगदम्बा के सामने कुछ जिज्ञासु होने का कुछ पूछने की इच्छा हो रही है !यूं तो पूरे नवरात्र भर ,परन्तु कल अष्टमी और परसों नवमी इन दोनों तिथियों पर माता के दरबार में अपनी मन्नत पूरी होने पर और माँगने की इच्छा ले कर ,उनके भक्त बलि देते हैं |पहले तो नर-बलि भी होती थी ,परन्तु अब पशुओं की बलि दी जाती है |मेरी जिज्ञासा कह लें अथवा एक छोटा सा प्रश्न ,सिर्फ इतना सा है की दुनिया में ऐसी कौन सी माँ है जो किसी के प्राण लेना चाहेगी और वो भी तब जब उसको धन्यवादस्वरूप ऐसा कृत्य किया जाए ?एक साधारण मानवी माँ तो मैं भी हूँ |मैं अगर बच्चों से धन्यवादस्वरूप कुछ भी लेना नहीं चाहूंगी |यदि तब भी अगर बाल-हठ मानना ही पड़े ,तो मैं उनके द्वारा किसी का अहित न हो यही चाहूंगी | ये भी कामना करूंगी की वो सबको खुशियाँ देने वाले बने ,प्राण लेने वाले नहीं ! जब मेरे जैसी एक साधारण माँ किसी का अहित नहीं चाहती ,तब जगदम्बा के नाम पर ये हत्याकाण्ड क्यों ?आखिर उन पशुओं को भी तो ईश्वर ने ही बनाया है |उन से उनका जीवन और जीने का अधिकार छीनने वाले हम हैं कौन ?
मेरा इरादा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पँहुचाने का नहीं है |सिर्फ एक बार ये सोच कर तो देखिये की कोई इस दुष्कृत्य के लिए हमको हमारे माता-पिता से छीन ले जाए तब उनको कैसा लगेगा ?जिन पशुओं की बलि दी जाती है वो भी तो किसी के बच्चे ही हैं !इससे तो बेहतर होगा अगर जगदम्बा के धन्यवादस्वरूप हम किसी असहाय की सहायता करें |हमारा किसी निर्बल का बल बनाना माँ को ज्यादा पसंद आयेगा !जगदम्बा की आवाज़ को अगर हम सुन पायें तो वो भी मेरे इस मत से सहमत होंगी !!!
आपका सवाल चिंतनीय है और आपकी सोच सात्विक है परन्तु यह सब रुकने में समय लगेगा. बाहरी तौर पर तो सभी इसकी निंदा कर देंगे पर अपनी 'मनोकामनाओं' के लिए ऐसा करने में हिचकिचाएंगे नहीं.
जवाब देंहटाएंजो व्यक्ति सात्विक और अहिंसक जीवनशैली का पक्षधर है वह यह सब न तो करेंगा और न ही इसका समर्थन करेगा.
शब्दशः सहमत!
जवाब देंहटाएंसादर
bilkul sach kaha hai aapne
जवाब देंहटाएंपशुओं की बलि न दी जाये।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंकिसी भी प्रकार की बलि किसी भी देवता को स्वीकार्य नहीं होती.ये पंडा लोगों की स्वार्थ सिद्धी के प्रपंच हैं.
मांसाहारी लोगों की क्षुधा पूर्ति है.
इसी तरह कोई भी देवी देवता या ईश्वर किसी का अहित नहीं कर सकते हैं.उनका कुपित होना मानना भी मूर्खता है.
देवी देवता ,देव गुणों के कारण ही देवता कहलाते हैं.असुर गुणों वाले असुर ही हैं.
बलि भी आसुरी अनुकरण है,देव अनुकरण नहीं.
बलि देने वाला,करने वाला,करवाने वाला कर्म दोष में जरूर बंध जायेंगे.
अगर बलि देनी ही है तो अपने अवगुणों की दो.
koi nahi samjhega... puja ke naam per jo n ho
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंविचारणीय
जवाब देंहटाएंअज्ञानता दूर होने में अभी वक़्त लगेगा। शिक्षा के प्रचार प्रसार में और भी तेजी की ज़रुरत है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात है...पहले भी ये मुद्दे उठते रहे हैं.....और बार बार उठाना जरूरी है...
जवाब देंहटाएंमैं आपसे सहमत हूँ ! अशिक्षा और अंधविश्वास जिम्मेवार हैं इन कर्मकांडों के लिए ! शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंआप सब का समर्थन देने का शुक्रिया .....
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंइन चंद मांसाहारी लोगों ने सारा खेल खराब किया हुआ है
इन्हे बलि देने का शौक है तो अपनी औलाद की दे तब पता चले क्या होती है बलि??/?//?//