कभी-कभी ये सोचती हूँ कि ईश्वर ने जब हमें एक सहज-सरल मुखाकृति दी है ,तब हम उसको अपने विचारों की तरह विकृत बनाने की गलती कैसे कर जाते हैं ! जगत के सृष्टा -उस सबसे बड़े इंजीनियर ने कुछ अनुपात में ही हमारी सरंचना की होगी !
अब ज़रा सोच कर देखिये कि ईश्वर ने हमारे चेहरे पर जो एक ध्वनि-विस्तारक यंत्र (होंठ) लगा रखा है ,उस का आकार-प्रकार भी अपनी मन:स्थिति के अनुसार हम बदल देते हैं |
देखा आपने जब हम दुखी होते हैं ,तब लगता है अधर-रेखा गिरती-गिरती किसी प्रकार कन्धों के सहारे अटक जाती है |दूसरी मन:स्थिति में अर्थात नो कमेन्ट की स्थिति में जब दुनियादारी और सामाजिकता निभाने की अकल काम करती रहती है तो स्मित कानों तक पहुंचा देते हैं |जब अपने मन का हो जाता है तब तो ये रेखा कानों तक ही पहुँच कर मानती है | जब हम उलझन में होते हैं कि हमारी प्रतिक्रया क्या होनी चाहिए तब ये रेखा सड़क पर की रम्बल स्ट्रिप जैसी हो जाती है |
शायद अब आप भी सहमत हो गए हों ! चलिए कोशिश करते हैं जगत-निर्माता को सहयोग करने की और चेहरे को सहज रखने की .....
शायद अब आप भी सहमत हो गए हों ! चलिए कोशिश करते हैं जगत-निर्माता को सहयोग करने की और चेहरे को सहज रखने की .....
बिलकुल सहमत आपसे !
जवाब देंहटाएंसादर
jabardast
जवाब देंहटाएंसहजता ही सुन्दरता होती है...बहुत खूबसूरत भाव..
जवाब देंहटाएंएक दम सच कहा ....बिलकुल सहमत
जवाब देंहटाएंजाट देवता की राम-राम,
जवाब देंहटाएंमेरी आदत तो तीसरे वाली फ़ोटो जैसी है।
फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े निवेदिता जी......धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंApki baat se poori tarah sahmat hun ...
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