ये क्या ......
ऐसे क्यों
ऐसे क्यों
मांग लिया !
अनछुए से
सपनों की
सौगात ......
ये कैसे रिश्ते,
ये कैसे ज़ज्बात !
कर लेते कैसे
शर्तों की बात ,
साथ में थोपी
अग्निपरीक्षा की
जलती सौगात !
इन रेशमी -अधबुने से
ख़्वाबों का कोष ,
यही तो निज मेरा है
इस मंझधार में ,
शमशीर सी धार में
क्या चुन लूँ ?
अपने अनछुए से सपनों को
या फिर ......
सपनों की हकीकत जैसे तुम को ...
ये दग्ध करते ख्याल
किस से वंचित हो जाऊँ
किस को वंचित कर जाऊँ
किस तट जा विराम पाऊँ ...........
-निवेदिता
किस तट जा विराम पाऊँ ...........
-निवेदिता
क्या चुन लूँ ?
जवाब देंहटाएंअपने अनछुए से सपनों को
या फिर ......
सपनों की हकीकत जैसे तुम को ...kya baat kah di aapne niveditadi.........bahut bhavnaatmak....
खूबसूरती से आकार लेते शब्द ,मनमोहक रचना बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अहसास को शब्द दिए है आपने
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
बहुत ही सुंदर शब्द रचना.....निवेदिता जी
जवाब देंहटाएंकर लेते कैसे
जवाब देंहटाएंशर्तों की बात ,
साथ में थोपी
अग्निपरीक्षा की
जलती सौगात !
...मन के अंतर्द्वंद की बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति..
मन में दहकते प्रश्न ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजो सत्य में सामने है, वही निभायेगा, वही सुख दिलायेगा। कल्पनायें तो काल्पनिक हैं।
जवाब देंहटाएंअपने जज्बातों को आपने खुबसुरत अदांज में शब्दों में पिरोया है। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव संजोये मर्मस्पर्शी कविता.
जवाब देंहटाएंसादर
कर लेते कैसे
जवाब देंहटाएंशर्तों की बात ,
साथ में थोपी
अग्निपरीक्षा की
जलती सौगात
गहरे भाव , भावपूर्ण प्रस्तुति..
क्या चुन लूँ ?
जवाब देंहटाएंअपने अनछुए से सपनों को
या फिर ......
सपनों की हकीकत जैसे तुम को ...
ये दग्ध करते ख्याल
किस से वंचित हो जाऊँ
किस को वंचित कर जाऊँ
किस तट जा विराम पाऊँ ..
bahut sunder...
dil ko chhuti hui rachna...
किस तट जा विराम पाऊँ ...........
जवाब देंहटाएंअंतर्मन का अंतर्द्वंद उकेरती .....सुंदर भावाभिव्यक्ति
गहन चिंतन से उपजी सुन्दर और सार्थक कविता.
जवाब देंहटाएंये दग्ध करते ख्याल
जवाब देंहटाएंकिस से वंचित हो जाऊँ
किस को वंचित कर जाऊँ
किस तट जा विराम पाऊँ ...........
tumne to chhayawaad ka adhaar diya hai ismein
किंकर्तव्यविमूढ़ता का सफल चित्रण।
जवाब देंहटाएंbahut khoob kaha .....
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा चित्रण...वाह!!
जवाब देंहटाएंmn kee gehraayiyoN se kahe gaye
जवाब देंहटाएंanoothe shabd
anupam kaavya mei dhal gaye haiN .
abhivaadan .
बहुत ही खूबसूरत कविता बधाई निवेदिता जी |
जवाब देंहटाएंदिल के जज्बातों को ज़ुबान दे दी है ....
जवाब देंहटाएंइस मंझधार में ,
जवाब देंहटाएंशमशीर सी धार में
क्या चुन लूँ ?
अपने अनछुए से सपनों को
या फिर ......
बहुत बढ़िया !
Satya to isee jagat ka hai usase bach kar kahan jayenge par sapne dilasa dete hain ek aas bhee jagate hain. koshish se such bhee hote hain.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
आप सब मित्रों का आभार .....
जवाब देंहटाएं@संगीता दी ,उत्साहवर्धन के रूप में आपका आशीष मिल गया :-))
मन की विकलता ने एक गंभीर रचना के रूप में सुन्दर आकार लिया है ! अत्यंत प्रभाशाली एवं मर्मस्पर्शी रचना ! बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंअहसास पड़ाव पर अंतर्मन को उकेरती रचना
जवाब देंहटाएंअंतर की व्यथा को उजागर करती हुई रचना बहुत ही सुंदर लगी. आभार.
जवाब देंहटाएंman ke dwandh kee sundar prastuti
जवाब देंहटाएंमन के आरोह-अवरोह को खूबसूरती के साथ शब्दों में रूपांकित किया है आपने।
जवाब देंहटाएंकिस से वंचित हो जाऊँ
जवाब देंहटाएंकिस को वंचित कर जाऊँ
किस तट जा विराम पाऊँ।
बहुत सुंदर
सपनों की हकीकत जैसे तुम को ...
जवाब देंहटाएंये दग्ध करते ख्याल
किस से वंचित हो जाऊँ
किस को वंचित कर जाऊँ
किस तट जा विराम पाऊँ ..........
मन के अंतर्द्वंद की बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति..