शनिवार, 21 मई 2011

छोटी सी चाहत .........


अबोध नन्हे से  शिशु ,
जैसे चाँद-तारे उग गए अंचल में ,
सोचा दुनिया ही सारी वार दूँ,
अपनी आँखों के चमकते सितारे पर !
रंग-बिरंगे छोटे-बड़े गुब्बारे ,
या गोल-गोल लुढ़कती गेंद ,
ठुमकते कदमों में पहनाऊँ ,
झनकती-चमचमाती झांझर !
थोड़ा सा तो बड़ा हो ले  ,
सजा दूँ अक्षरों की दुनिया ,
अच्छा शिक्षालय अच्छा भविष्य ,
कुछ भी न रह जाए अनदिया !
फिर सोचा उसके मन में तो झाँकू ,
वहां क्या-क्या सपने हैं जग रहे .......
अरे ! इस नन्ही दुनिया की 
चाहत है ये कैसी अनोखी .........
इसे नहीं चाहिए कैसे भी 
खिलौनों का सजीला भण्डार ,
ना ही अक्षरों की रंगीली बरसात ,
ना तो स्नेह ,ना ही बरसता प्यार ,
बस इक छोटी सी है चाह .........
पा जाए हमारा बस अथाह दुलार !
ज़रा सा दुलराना बन जाए संजीवनी ,
हर कठिन कंटकित पथ हो जाए सहज ,
इस दुलार से वो तन जाए - संवर जाए ,
अनुभव कर दुलराती छाँव ,दृढ़ हो जाए ,
दुनियावी सलीके खुद ही साथ हो लेंगे ,
इक नन्हे से पौधे को संवार कर देखो ,
कब वटवृक्ष बन प्रमुदित हो छा जाएगा '
कमज़ोर पड़ते कांपते क़दमों का , 
बड़ा प्यारा मजबूत सहारा बन जाएगा , 
चलो अब से ही सही इनकी चाहत पूरी तो करो ,
बस थोड़ा सा उनको दुलरा तो लो ..........
                                                      -निवेदिता  




18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी लगी आपकी कविता
    जितनी कोमल और निश्छल बच्चे की मुस्कान होती है वैसी ही कोमल और मन को छूती हुई रचना

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  2. bahut acchi rachna ....mujhe mere baccho ka bacpan yaad aa gaya.....bahut khub

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  3. @संजय शुभकामनायें !
    @अन्जु जी मेरा लिखना सार्थक हो गया :-)

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  4. बहुत ही प्यारी कविता.

    सादर

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  5. ज़रा सा दुलराना बन जाए संजीवनी ,
    हर कठिन कंटकित पथ हो जाए सहज ,
    इस दुलार से वो तन जाए - संवर जाए ,... yahi dulaar uski dhaal hai

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  6. बच्चों पर केन्द्रित संसार हो जाये तो भविष्य बड़ा सुखमय हो जाये।

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  7. कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति ,बधाई

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  8. कोमल अहसास और निश्छल प्रेम से ओतप्रोत सुन्दर रचना...

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  9. खूबसूरत अभिव्यक्ति| बधाई|

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  10. वाकई !
    इन नन्हों को एक मज़बूत सहारा चाहिए जब तक वे आंधी के तेज थपेड़े सहने लायक न हो जाएँ ! बेहतर सोंच और दिशा है इस रचना में !शुभकामनायें !

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  11. बस इक छोटी सी है चाह .........
    पा जाए हमारा बस अथाह दुलार !
    ज़रा सा दुलराना बन जाए संजीवनी ,
    हर कठिन कंटकित पथ हो जाए सहज ,
    इस दुलार से वो तन जाए - संवर जाए ,
    अनुभव कर दुलराती छाँव ,दृढ़ हो जाए ,
    दुनियावी सलीके खुद ही साथ हो लेंगे ,
    इक नन्हे से पौधे को संवार कर देखो ,

    एक उत्कृष्ट रचना है निवेदिताजी ......सच में इतना दुलार तो उनका अधिकार और हमारा कर्तव्य है ....

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  12. मां का दुलार बच्चे के भविष्य को संवार देती है।
    सार्थक संदेश देती सुंदर रचना।

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  13. वात्सल्य में सराबोर रचना.....

    कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  14. निवेदिता जी सुन्दर वात्सल्य से परिपूर्ण रचना निम्न पंक्तियाँ बुढ़ापे का सहारा बनाती सुन्दर सन्देश दे गयीं बधाई हो -

    इक नन्हे से पौधे को संवार कर देखो ,
    कब वटवृक्ष बन प्रमुदित हो छा जाएगा '
    कमज़ोर पड़ते कांपते क़दमों का ,
    बड़ा प्यारा मजबूत सहारा बन जाएगा ,
    चलो अब से ही सही इनकी चाहत पूरी तो करो ,
    बस थोड़ा सा उनको दुलरा तो लो .........

    निवेदिता जी धन्यवाद आप का-

    बेटियों के पैदा होने पर -स्वागत में आप आयीं और बेटियों के लिए आप ने लिखा हर्ष की बात है -काश सब लोग बेटियों के लिए ऐसे ही सोच रखें कोई फर्क न करें ??

    ये मैंने बेटियों के लिए लिखा है से आप का मतलब क्या है ??

    शुक्रिया आप का

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