'किन्नर' ये सुनते ही सब की भाव-भंगिमा बदल जाती है | एक विद्रूप भरी स्मित से चेहरा भर जाता है | कभी हम में से कोई भी मानवीय हो कर इनके बारे में क्यों नहीं सोच पाता ? जिस नाम से संबोधित करते हैं , अगर हम सिर्फ़ उस शब्द को ही ध्यान दें तो हमारे मनोभाव पता चल जायेंगे !
'किन्नर'देखा क्या कहा -किन को नर कहा | हमने उन्हें नर (इस पुरुषवादी समाज की अवधारणा के अनुसार) अर्थात इंसान मानने से ही इनकार कर दिया | जबकि अगर देखा जायेतो इन किन्नर नामधारी ने इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है | हमारी याददाश्त इतनी भी खराब भी नहीं हैं कि 'महाभारत' के'शिखंडी'को भूला जायें जिसका सहारा ले कर अर्जुन ने अमर माने जाने वाले युग पुरुष 'भीष्म' को धराशायी कर दिया था |अगर भीष्म जीवित रहते तब क्या कोई भी पांडवों की विजय की कल्पना भी कर सकता था !संभवत:तथाकथित कलियुग भी समय से पूर्व आने को मजबूर हो जाता ......| अज्ञातवास के समय जब पांडव छुपने का प्रयास कर रहे थे तब सर्वमान्य वीर धनुर्धर अर्जुन को 'वृहन्नला' बनना पड़ा था ! ये तो अवसरवादिता ही हुई कि अपने स्वार्थ के लिए हम इस वर्ग को मान दें अन्यथा उपहास करें और स्वयं को श्रेष्ठ माने | मैं भी इस सच्चाई से खुद को अलग नहीं कर पाती हूँ कि अब इस वर्ग का बहुत ही विकृत रूप सामने है | कहीं सड़क पर इन की टोली दिख जाती है तो मैं भी रास्ता बदलना चाहती हूँ परन्तु साथ ही बेहद विचलित भी हो जाती हूँ जब देखती हूँ वो तलाश रहें हैं दूसरों की खुशियाँ जिससे उन को भी जीवनयापन के लिए अर्थार्जन हो जाये |
मुझे भी कष्ट होता है जिस तरह ये वसूली करते हैं दबंगई से | किसी भी विवाह-स्थल पर इनलोगों के आने की भनक भर लग जाये माहौल में एक तरह की दहशत सी तैर जाती है | मैं खुद भी प्रत्यक्षदर्शी हूँ , इस पीड़ा का | एक शादी में शामिल हुए थे हम और जिसे तारों की छाँव कहेंगे उस समय ये सब आ गए और अपना तमाशा शुरू कर दिया .........मेज़बान ने कहा की अगर पहले पता होता तो इस दहेज़ का भी इंतज़ाम कर लेते क्योंकि मांग पूरे इक्कीस हज़ार की थी !खैर वो मामला तो मोलभाव कर के निपट गया | जाते-जाते उन सब ने कहा कि कभी समय हो तो हमारे इस व्यवहार का कारण सोचियेगा | मैं उस वर्ग की तरफ़दारी नहीं कर रही पर इसके मूल में कहीं न कहीं एक कारण उनकी उपेक्षा भी है | हम सबकी शगुन मनाने वाले इस वर्ग की तकलीफों को अगर सहिष्णु हो कर ,समझ कर दूर करने का प्रयास किया जाये और मन से इनको भी इंसान समझे तब शायद इनको देख कर रास्ता बदलने को मन नहीं आतुर होगा और इनका आक्रोश इस तरह नहीं बिखरेगा क्यों कि ये भी प्रकॄति के सताये हुए ही हैं...................
पीड़ा जायज़ है मगर उसे प्रदर्शित करने का अंदाज़ नहीं ...कभी -कभी दूसरों की आर्थिक स्थिति की परवाह किये बगैर भी अपनी बात मनवाने के लिए असामान्य हरकतें करते हैं !
जवाब देंहटाएंunaki majboori aur pareshani galat nahi hain
जवाब देंहटाएंparantu aajkal vo iska galat fayda utha rahe hain
mana uname kuch kami hain parantu hath pair to salaamat hain mehnat karke bhi kama sakte hain
jis tarah se aajkal vo log paise mangate hain logo ne to dena band kar dia hain and jo de bhi dete hain pyar se nahi dete
सही बात
जवाब देंहटाएंbahut hi mmarmik vishay
जवाब देंहटाएंvaani or chirag ji ne sahi kaha
आपकी बातें सही हैं लेकिन वाणी जी और चिराग जी की बातें भी विचारणीय हैं.
जवाब देंहटाएंसादर
सही विवेचन
जवाब देंहटाएंउनके व्यवहार में उपेक्षा की पीड़ा का आक्रोश झलकता है।
जवाब देंहटाएं@चिराग -आपकी बातें सच हैं कि उनको भी दो हाथ तो ईश्वर ने दिये हैं ,लेकिन कभी आप सच जानने की कोशिश कीजिये तब स्थिति इसके विपरीत भी दिखती है ।एक दुकान पर ऐसा शख़्स काम करता था पर उसको काम से निकाल दिया गया था क्यों कि ग्राहकों ने उस के वहां काम करने पर उस दुकान को छोडने को कह दिया था और जैसा कि होना ही था वो शख़्स नये काम की तलाश में भटक रहा है .....इन परिस्थितियों में आप किस को कसूरवार मानेंगे....
जवाब देंहटाएं@वाणी जी और @यशवन्त यही बात मैने भी कही है पर इसका कारण ,जैसा कि प्रवीण जी ने कहा है ,उनकी उपेक्षा की पीड़ा है ......
उनकी पीड़ा सही है, पर उनका व्यवहार बिलकुल उचित नहीं कहा जा सकता है..उनके व्यवहार को उपेक्षा की पीड़ा के आवरण में नहीं ढक सकते.अगर उन्हें समाज की स्वीकृति चाहिए तो उन्हें भी अपने व्यवहार में परिवर्तन करना होगा.
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जवाब देंहटाएं@कैलाश जी ,मैं भी इस से प्रारम्भ से ही सहमत हूं ।मेरा आशय सिर्फ़ इतना है कि हम इतना ही कठोर रुख अन्य गलत वालों के साथ(जैसे जाट आन्दोलन ,आरक्षण बचाओ समिति आदि) क्यों नहीं करते हैं ....सादर !
जवाब देंहटाएंbahut hi sashaktta aahwaan hai....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक आलेख ।सहानुभूति है इनकी पीड़ा से ।
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