अकसर सोचती हूँ कि सब हमेशा कैकेयी को गलत क्यों बताते हैं ! क्या सच में वो ऐसी दुष्टमना थी ?क्या वाकई उसने राम से किसी पूर्व जन्म का वैर निभाया ? क्या वो इतनी निकृष्ट थी कि उसके अपने बेटे ने भी उसको त्याग दिया ? शायद ये हमारी एकांगी सोच का भी नतीजा हो !जिस मां का मानसिक संतुलन एकदम ही असंतुलित हो गया हो और जो किसी को भी न पहचान पा रही हो ,वो भी अपने बच्चे के लिए एकदम से सजग हो जाती है |इसलिए कैकेयी को एकदम अस्वीकार कर देना शायद उचित नहीं है,आज जरूरत है तो सिर्फ देखने का नजरिया बदलने की |एक प्रयास हम भी कर लेते हैं ....
ममता के भी कई रूप होते हैं |कभी वो सिर्फ वात्सल्य ,जिसमें बच्चा कभी गलत नहीं दिखता है ,होती है तो कभी संस्कार देती हुई सामाजिकता सिखलाती है और कभी अनुशासन का महत्व समझाती बेहद कठोर हो जाती है |इन तीनों ही रूपों में किसी भी रूप को हम गलत नहीं समझते हैं |राम की तीनों माताएं इन तीनों भावों की एकदम अलग-अलग प्रतिकृति दिखती हैं |कौशल्या का चरित्र जब भी सामने आता है सिर्फ वात्सल्य से भरी माँ ही नज़र आती है और इस वजह से ही वो थोड़ी कमज़ोर पड़ जाती है जो हर परिस्थिति में किसी भी कटुता से अपने बच्चों को बचाना चाहती है |सुमित्रा एक सजग और सन्नद्ध माँ का रूप लगी मुझे ,जो अपने पारिवारिक मूल्यों को अपने बच्चों तक पहुंचाने में तत्पर रहती है |बड़े भाई के वन-गमन पर लक्ष्मण को उसका अनुसरण करने को कहती है |बच्चे की सामर्थ्य और रूचि को समझ कर ही लक्ष्मण को भेजा शत्रुघ्न को नहीं |इसी तरह कैकेयी ने अनुशासन की कठोरता दिखाई और दूसरों के कष्ट को समझने की दृष्टि विकसित की |अगर कैकेयी ने राम को वन जाने के लिए मजबूर न किया होता तो राम जन-मन में नहीं बस पाते |वन में ही राम ने सामान्य वर्ग का कष्ट महसूस किया और उसके निराकरण का प्रयास भी किया |उस अवधि में ही राम ने अयोध्या के परिवेश को शत्रुरहित भी किया |रावण जैसे शक्तिशाली और दुष्टप्रवृत्ति का विनाश करना भी संभव तभी हो पाया जब राम वन की बीहण उलझनों में गए |अगर राम को कैकेयी ने वन न भेजा होता ,तब भी राम एक आदर्श पुत्र होते ,एक आदर्श शासक होते ऐसे कितने भी विशेषण उन के नाम के साथ जुड़ जाते ,परन्तु राम ऐसे जन-नायक नहीं होते जिस पर रामायण ऐसा ग्रन्थ लिखा जाता जो आज भी पूजित होता है |बेशक उन पर इतिहासकार पुस्तकें लिखते पर वो इतनी कालजयी और पावन न होतीं |अगर कैकेयी ने राम को वन जाने के लिए मजबूर न किया होता तो राम का "मर्यादा पुरुषोत्तम"रूप कहीं भूले से भी देखने को न मिल पाता|वैसे कमियां तो सभी में होती हैं परन्तु अगर इस परिप्रेक्ष्य में कैकेयी का आकलन करें तो शायद कुछ संतुलित हो सकेंगे ...................
खुद राम ने भी कहा - सौ बार धन्य है वो एक लाल की माई, जिसने जना भारत सा भाई
जवाब देंहटाएंमैं रश्मि जी से सौ प्रतिशत सहमत हूँ |बधाई इतने महत्वपूर्ण विषय को कलम की नोंक पर लाने के लिये नमस्ते /शुभ दिन
जवाब देंहटाएंहर कहानी और समाज में दोनों तरह के चरित्र होते रहे हैं ! कुटिल चरित्र में मृदुता ढूँढने की कोशिश करेंगे तो वह भी कहीं न कहीं मिल ही जायेगी ! कैकेयी को मात्र एक चरित्र ही मानना चाहिए इससे अधिक कुछ नहीं ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
मानवीय परिप्रेक्ष्य में आप सही ठहरा सकते हैं, पर जब परिवेश में अन्य ने आदर्शों और मर्यादा का स्तर इतना ऊँचा कर दिया हो तो?
जवाब देंहटाएंहर चरित्र कई सारे पहलू लिए होता है....... सुंदर ढंग से... संतुलित सोच के साथ आपने कैकयी के चरित्र को उकेरा
जवाब देंहटाएंचिंतनपरक विचारणीय लेख....
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सही बात कही है.
जवाब देंहटाएंवास्तव में कैकेयी एक राष्ट्र भक्त नारी थीं न कि उस चरित्र जैसी .इस विषय में पापा के ब्लॉग पर उनका राष्ट्रवादी कैकेयी शीर्षक आलेख भी देखा जा सकता है.
सादर
sahi kaha aapane
जवाब देंहटाएंnice thought.
...सही बात कही है
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी ,
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ इस नज़रिए से..Beautifully expounded.
चिंतनपरक विचारणीय लेख....
जवाब देंहटाएंआपका चिंतन जायज है, मैनें कैकेई पर एक सुन्दर खण्ड काव्य पढ़ा है आपके चिंतन को बल देता हुआ, समय मिला तो कुछ अंश अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत करूंगा.
जवाब देंहटाएंअगर कैकेयी ने राम को वन जाने के लिए मजबूर न किया होता तो राम का "मर्यादा पुरुषोत्तम"रूप कहीं भूले से भी देखने को न मिल पाता|....."जब कुछ अच्छा किसी भी बहाने से हो जाए,तो बुराई के बदले उसको सर ही नवाया जाए"..........
जवाब देंहटाएंआपका दृष्टिकोण भी सही है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख।
आज आपकी पोस्ट पढ़ी कैकई के बारे में आपने जो विचार दिए पढ़कर बहुत अच्छा लगा | मैंने भी इनके बारे में पढ़ा था जिससे पढ़कर मैंने भी बहुत कुछ जाना था , जैसे दुनिया में ये बात प्रचलित है की कैकई बहुत खराब थी उन्होंने श्री राम के साथ अच्छा नहीं किया था जबकि सत्य ये नहीं था कहते हैं कैकई ही श्री राम जी को सबसे ज्यादा प्यार करती थी और जब चौदह वर्ष के बनवास की बात आई तो राम जानते थे की अगर मेरी बात को कोई समझेगा तो वो माँ कैकई ही है और उन्होंने ये प्रस्ताव माँ कैकई के समक्ष रखा पहले तो वो सुनकर सिहर गई पर जब राम ने अपने प्यार की दुहाई दी तो कैकई ने राम के प्यार की खातिर अपने ऊपर लगने वाले इल्जाम की भी परवाह नहीं की और राम के मकसद को पूरा कर दिया |
जवाब देंहटाएंबहुत सकारात्मक सोच और सुन्दर लेख |
आपका दृष्टिकोण विचारणीय है. बहुत सुंदर आलेख।
जवाब देंहटाएंआपकी बातें एक तरह से सही भी हैं। मुझे लगता है कि रामायण में कई लोगों को न्याय नहीं मिला। उदाहरण के तौर पर रावण से युद्ध के दौरान सभी की अपनी अपनी भूमिका रही हैं। इसी तरह विभीषण के योगदान को भी भूलाया नहीं जा सकता। लेकिन राम ने उसे लंका का राजा तो बनाया, लेकिन वो सम्मान समाज में नहीं दिया, जिससे लोग अपने बच्चे का नाम विभीषण रखें, जबकि राम की भक्ति में वो भी किसी से 19 नहीं रहा है।
जवाब देंहटाएंनया दृष्टिकोण, गंभीर चिंतन...
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